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मेवाड़ के वीर
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से भूमते हुये रायाजी को घेरे हुये रण-क्षेत्र की ओर चल दिये । मार्ग. में चलते हुये राणाजी की मोह निद्रा दूर हुई। उन्हें चुण्डाघत सरदार का यह कार्य उचित जान पड़ा। उन्हें अपनी अकर्मण्यता पर पश्चाताप होने लगा । वे सरदार को सम्बोधन करके घोले:- 'शालुम्बा सरदार ! वास्तव में आज तुमने यह वीरोचित कार्य किया है, जिसकी याद सदैव बनी रहेगी । तुमने मुझे विलासिता के अँधेरे कूप में से निकाल कर मेवाड़ का मुख उज्वल किया है | इसके लिये मेवाड़ तुम्हारा कृतज्ञ रहेगा । अब तुम देखोगे, प्रताप का पुत्र, बप्पारावल का वंशघर कहलाने योग्य है अथवा नहीं ? आज रण क्षेत्र में इसकी परीक्षा होगी"
शालम्बा सरदार हाथ जोड़ कर बोले- "राणाजी ! यदि कुछ अपराध हुआ है तो क्षमा कीजिये । स्वामी को कुपथ से निकाल कर सुमार्ग पर लाना सेवक का कर्तव्य है, मैंने कोई नया कार्य नहीं किया; केवल सेवक ने अपना कर्तव्य पालन किया है" ।
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+ राणा अमरसिंह अपने वीर सैनिकों को लेकर जहाँगीर की सेना पर बाज की तरह झपट पड़े और अपने अतुल पराक्रम द्वार जहाँगीर का मान मर्दन कर दिया। थोड़े दिनों बाद अमरसिंह ने चितौड़गढ़ को मुगल बादशाह की पराधीनता से मुक्त कर लिया। इस प्रकार राणा प्रताप की अंतिम अभिलाषा पूर्ण हुई।
DEAURED MASUTR४० Manag
१ जून सन् १९२९
CIDOLPH 421 416