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मेवाड़ के वीर
१०३ को जलाने लगता है, तब.नेत्रों की राह से कोई चीज़ आँसू रूप में लिकल कर उसे घुझा देती है। सूर्य संसार को ता कर के उसे तड़पता हुआ देखकर जब हँसने लगता है, तब उसके इस गर्मीले अट्टहास को नष्ट करने के लिए पृथ्वी और आकाश साधन जुटा ही लेते हैं। ___ प्रकृति का कुछ नियम ही ऐसा है । अत्याचार के विरुद्ध गक न एक रोज आवाज उठती है। और अत्याचारी का गर्व खर्व करने की कोई न कोई युक्ति निकल ही आती है । अत्याचार जब आवश्यकता से अधिक बढ़ जाते हैं, तब अत्याचार सहन फरने वाला कैसा ही शान्त महात्मा क्यों न हो, उसके हृदय में भी प्रतिहिंसा की आग भड़क ही उठती है। यह वात पुराण और इतिहास टोल पीट कर कह रहे हैं। अत्याचारों से ही ऊब कर योगी कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर डाला,.अत्याचार से ही वो ऊब कर धर्मराज युधिष्ठेर जैसे शान्त-स्वभावी अपने मगे सम्बन्धियों से युद्ध करने को विवश हुये, अत्याचार से ही ऊय कर विभीषण ने अपने सगे भाई रावण का एक अपरिचित राम से वध करा डाला और इसी अत्याचार प्रतिहिंसा की प्यास
* जव धर्म की संसार में हो जाती है हानी ।
बदकार किया करते हैं जब जुल्मोरसानी ॥
फिरजाता है नेकों की भलाई पै जब पानी । · फुदरत के वहीं खिलते हैं इसरार निहानी ।।
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- 'नाज जैन