________________
राजपूताने के जैन-चीर : और-विजाति के मनुष्यों को अलग-अलग नेत्रों से देखकर अपने हृदय में पत्थर को बान्धे और अपनी प्रजा तथा :आश्रितों को पीडित करे, तोवह निःसहाय प्रजा- किसके सामने खड़ी होगी ? किसके निकट जाकर सहारा लेगी अपना और पराया.सजाति
और विजाति कोन विचार कर सब को वरावर नेत्रों से देखना ::राजा का आवश्यकीय कर्तव्य है और जो इन कार्यों के पालन
करने से विमुख है वह राजा नाम कोयोग्य नहीं राज-सिंहासन उसके छूने से भी कलंकित होता है। राज-सिंहासन पर बैठकर जो हिवाहित का विचार नहीं करता और गर्व, मोह, कोष तथा "अहंकार-जिसके हृदयां में भरा हुआ है और जो अपनी विवेकशक्ति को खोकर करा धर्म की बुद्धि से परिचालित होता है वह राजा नहीं है परन् राजा के नाम को लजाने वाला है। वह अना के सुख-रूपी सूर्य का हरण करनेवाला साहू है, देश के भाग्याकाश · को घेरने वाला प्रचंडाधूमकेतु है। उसके असंख्य पापों से उसका
राज्य शीघ्र ही पाताल को चला जाता है। विधाता के सूक्ष्मदर्शन : से उस अत्याचारी: पापी के मस्तक पर कठोर: यमराज का दण्ड. गिरता है।"..
मुगल कुलपाँसन पाखंडी औरंगजेब के कठोर अत्याचार से : सम्पूर्ण राज्य में अराजकता उत्पन्न होगई; पीड़ित हुये हिन्दुओं · का भागना और आत्म-हत्या करने से नगर, प्राम औरसम्पूर्ण . बाजार एक साथ. ही:सूने होगये । तथाः सव. स्थानः श्मशान के . समान दिखाई देने लगे। बनियों के न होने से सब बाजारा सूने