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राजपूताने के जैन-धीर और घड़ी वीरता पूर्वक लड़कर मारा गया। उसकेलड़ने के विषय का हमें एक प्राचीन गीत मिला है, जिससे पाया जाता है कि उसने कई शत्रुओं को मार कर वीरगति प्राप्त की और अपना तथा अपने स्वामी का नाम उज्वल किया । मालूम ऐसे ही वीररत्नों से प्रभावित होकर श्री वियोगी हरि जी ने लिखा है
धन्य वैश्य-वर वीर जे मेलि रुगड रण-कुण्ड । . खड्ग-तुला पै मत्त है। रखिं चोलें खल-मुण्ड ॥ धन्य वनिक जो लै तुला, वैव्यो समर-बज़ार । अरि-मुण्डन को धर्म सों, कियौ पनिज व्योपार ।।
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या असूबर सन् २
बर सन् ३२
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+रा.पूका. इ. ती...' पृ० १५२ ।