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राजपूताने के जैन वीर
महल को छोड़ कर जीन पर सोना और घोड़े की पीठ ही बैठे रोटी खाना सीखो, तब कहीं अपनी कीर्ति रख हमारे पुरुषाओं का यह पुराना रिवाज रहा है।"
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देख कर
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युवराज अमरसिंह की भी ऐसी ही एक बात राणा प्रताप दुखी थे । इस घटना को लेकर जून सन् १९२९ में एक कहानी लिखी थी । यद्यपि उस कहानी में वर्णित व्यक्ति जैन न होने से प्रस्तुत पुस्तक से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है । फिर भी शिक्षाप्रद और प्रसंगवश उस कहानी को यहाँ उद्धृत करने का लोभ संवरण नहीं किया जा सकता ।
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१ नवम्बर सन् ३२
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पर बैठे.
सकोगे ।