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मेवाड़ के वीर
मेवाड़ के पवित्र और श्वेतयश में कलंक लगा दोगें।"
महाराणा का वाक्य पूरा होते ही समस्त सरदार मिलकर बोले:क्षमा-अन्नदाता, महाराज ! हम लोग वप्पारावल के पवित्र सिंहासन की शपथ खाकर कहते हैं कि "जब तक हममें से एक भी जीवित रहेगा, उस दिन तक कोई तुरक मेवाड़ की भूमि पर अधिकार नहीं पा सकेगा । जब तक मेवाड़ भूमि की स्वाधीनता पूर्ण भाव से प्राप्त न कर लेंगे, तब तक इन्हीं कुटियों में हम लोग, रहेंगे ।"
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सरदारों की. वीरोचित शपथ सुनकर हिन्दु-कुल-भूषण वीरचूड़ामरिण राणा प्रताप के नयन करोखों से आनंदाश्रु झलकने लगे । वह नेत्र विस्फारित करके मुस्कराते हुये "भारत माता . की जय” "मेवाड़ भूमि की जय" इतना ही कह पाये थे, कि उनकी आत्मा स्वर्गासीन हो गई | मेवाड़वासी दहाड़ मारकर रोने लगे, मेवाड़ अनाथ हो गया।
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वीर केसरी प्रताप के स्वर्गासीन होने पर युवराज अमरसिंह को राघववंशीय सूर्यकुल-भूपण यप्पारावल के पवित्र सिंहासन पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । महाराणा अमरसिंह में असाधारण गुण थे । उन्होंने अपने शासन काल में मेवाड़ में कई आदर्श सुधार किये । किन्तु, लेच्छाचारिता और विलासिता दो ऐसे अवगुण हैं, जो मनुष्य के अन्य उत्तम गुणों पर भी पर्दा डाल देते हैं । दुर्भाग्य से राणा अमरसिंह भी प्लेग; हैजे के समान उड़कर लगने वाली विलासिता रूपी बीमारी से न बच सके। वे
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