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मेवाड़ के वीर
.१११ इस प्रकार से बहुत से नगर और गाँव.इनके हाथ से उजाड़े गये। इनके भय से नगर-निवासी यवन इतने व्याकुल हो गये थे,, कि किसी को भी अपने वन्धु-वान्धव के प्रति प्रेम..न रहा, अधिक क्या कहें, वे लोग अपनी प्यारीबी क्या पत्रों को भी..छोड़-छोड़ फर अपनी अपनी रक्षा के लिये भागने लगे, जिन ,सम्पूर्ण साममियों के ले जाने का कोई उपाय दृष्टि न आया अन्त में ,उनमें अग्नि लगाकर चले गये। अत्याचारी औरंगजेब हृदय में पत्थर को वान्धकर निराश्रय राजपूतों के ऊपर पशुओं के समान आचरण करता था, आज उन लोगों ने ऐसे सुअवसर को पाकर उस दुष्ट को उचित प्रतिफल देने में कुछ भी कसर नहीं की, अधिक क्या कहें ? हिन्दु धर्म से पैर करने वाले बादशाह के धर्म से भी पल्टा लिया। काजियों के हाथ पैरों को वान्ध कर उनकी दाढ़ी मूंछों को मुंडा और उनके फुरानों को कुए में फेंक दिया। दयालदास का हदय इतना.कठोर हो गया था कि उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी मुसलमान को भी क्षमा नहीं किया । तथा मुसलमानों के मालवा राज्य को तो एक बार मरभूमि के समान • कर दिया, इस प्रकार देशों को लूटने और पीडित करने से जो विपुल धन इकट्ठा किया, वह अपने स्वामी के धनागार में दे दिया
और अपने देश की अनेक प्रकार से वृद्धि की थी।" _ विजय के उत्साह से उत्साहित होकर तेजस्वी दयालदास ने राजकुमार जयसिंह के साथ मिलकर चित्तौड़ के अत्यन्त ही निकट पादशाह के पुत्र अजीम के साथ भयंकर युद्ध करना प्रारम्भ .