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.. मेवाड़ के वीर १०९ की बिजली सी दौड़ गई। कमर में लटकी हुई तलवार आतताइयों का रक्त चाटने के लिए अंधीर हो उठी। उसकी भवें तन गई, वह मस्ती में झूम कर गुनगुनाया- '... . .:.
.. "क्या अबलाओं की आबरू उतरते देखना धर्म है ? क्या मासूम बच्चों, दीन, दुर्बल मनुष्यों को रक्षा करो-रक्षा करों" चिल्लाते हुऐ देखना धर्म है? क्या धार्मिक स्थानों को धराशायी होते हुये देखना धर्म है ? क्या पवित्र मातृभूमिः को म्लेच्छों से पद्दलित होते देखना धर्म है ? क्या अपमानित होकर भी जीना धर्म है ? यदि नहीं,तब क्या अत्याचारी को बारर क्षमा करके उसे
उत्साहित करना, यह धर्म है. ? अत्याचारियों के सदेव जूते खाते . रहो, क्या इसी लिए हमारे ऋषियों ने "क्षमावीरस्य भूषणम्" सूत्र की रचना की है ? नहीं वे तो स्पष्ट लिख गये हैं कि:-"शठं प्रति शाठ्य" फिर यह जानते हुये भी पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को बार-बार क्षमा क्यों किया? यह उसकी उदारता नहीं; मूर्खता थी। आज उसी. मूर्खता का कटु-पल भारतवासी भुगत रहे हैं। अपराधी को क्षमा करना हमारे यहाँ का पुराना आदर्श है । पर, एक ही आदर्श सबजगह और सब समय पर लागू नहीं हो सकता ।
जो धी बलवान मनुष्य के लिये लाभदायक है,वही घी १० रोज के 'लंघन किये हुये मनुष्य के लिये घातक है। एक ही बात को एक
ही तरह मान लेना यही दुराग्रह है । गाना अच्छी चीज़ है किन्तु, . . घर में आग लगी हो.या मृत्यु हुई हो, तो वही. गाना .उस समय : कर्णकटु प्रतीत होने लगता है । भ्रूण हत्या सब से अधिक निन्द