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मेवाड़ के वीर १९६ से बनवाया, जो उसकी कीर्ति का स्मारक है । उसका पुत्र सांवलदास हुआ, पीछे.से. इस वंश में कोई प्रसिद्ध पुरुष हुओं हो ऐसा पाया नहीं जाता।। __ महात्मा टॉड साहब ने दयालदास के हस्ताक्षरों का राणा राजसिंह के एक श्राज्ञा-पत्र को अपने अंगरेजी राजस्थान जि० १ का अपंडिक्स नं ५ पृ० ६९६ और ६९७ में अंकित किया है जिसका हिन्दी अनुवाद वा० बनारसीदासजी एम.ए. एल-एल-बी. एम. आर. ए. एस. कृत जैन इतिहास सीरीज नं०१४० ६६.से उद्धृत किया जाता है:-.
आज्ञापत्र महाराणा श्रीराजसिंह मेवाड़ के दश हजार ग्रामों के सरदार, मंत्री और पटेलों को आज्ञा देता है, सब अपने २ पद के अनुसार पढ़ें। (१) प्रचीन काल से जैनियों के मन्दिर और स्थानों को अधिकार मिला हुआ है, इस कारण कोई मनुष्य उनकी सीमा (हंद) में
जीववध न करे, यह उनका पुराना हक है। (२) जो जीव नर हो या मादा, बध होने के अभिप्राय से इनके
स्थान से गुजरता है, वह अमर हो जाता है ( अर्थात् उसका जीव बच जाता है) + राजपूताने का इ० चौथा सं० पृ० १३०४-६ ।
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