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राजपूताने के जैनचोर महाजन गुणराज ने कराया था; इस समय यह मन्दिर टूटी
फूटी दशा में पड़ा हुआ है ।" (पृ. ३५२) : ३-जैनमन्दिर चित्तौडदुर्ग पर 'गोमुख' नाम का प्रसिद्ध तीर्थ है,
जहाँ दो दालानों में वीन जंगह गोमुखों से शिव-लिंगों पर पानी गिरता है ।...इन दालानों के सामने ही 'गोमुख'नामक नल का सुविशाल कुंड है जहाँ लोग स्नान करते हैं । गोमुख के निकट महाराणा रायमल के समय का बना हुआ एक छोटा सा जैनमन्दिर है, जिसकी मूर्ति दक्षिण से यहाँ लाई गई थी, क्योंकि उस मूर्ति के ऊपर प्राचीन कनड़ी लिपि का लेख है और नीचे के भाग में उस मूर्ति की यहाँ प्रतिष्ठा किये जाने के सम्बन्ध में वि० सं० १५४३ का लेख पीछे से नागरी
लिपि में खोदा गया है। (पृ० ३५४) ४-सतवीस देवला-चित्तौडदुर्ग पर पुराने महलों का 'वडीपोल'
नामक द्वार आता है । इस द्वार से पूर्व में कई एक जैनमन्दिर टूटी फूटी दशा में खड़े हैं और उनमें से 'सतवीस देवला' (सत्ताईस मन्दिर) नामक जिनालय में खुदाई का काम बड़ा ही सुन्दर हुआ है । इसी के पास आज कल महाराणा फत
इसिंह के नये महल बने हुए हैं। (पृ०३५६) . ५-शान्तिनाथका मन्दिर चित्तौड़ दुर्ग पर पुराने राजमहलों के
निकट उत्तर की तरफ सुन्दर खुदाई के कामवाला एक छोटा ‘सा मन्दिर है, जिसको अंगारचवरी कहते हैं। इसके मध्य में एक छोटी सी वेदी पर चार स्तम्भ वाली छत्री बनी हुई
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