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मेवाड़-परिचय पहाड़ी के पश्चिमी सिरे के पास अनुमान २०० घरों की ही वस्ती रह गई है और शेष सव मकानों के गिर जाने से इस समय वहाँ खेती हुआ करती है" । इस किले में कितनी ही प्राचीन इमारतें आज भी उस गौरवमयी अतीत काल की पवित्र स्मृति में खड़ी हुई हैं। यहाँ स्थानाभाव के कारण श्री ओझाजी कृत राजपूताने के इतिहास पहिली जिल्द से केवल जैन स्थानों का परिचय दिया जाता है :३-जैनकीर्तिस्तम्भ- चित्तौड़-दुर्ग पर सात मंजिल वाला जैन
कीर्तिस्तम्भ है। जिसको दिगम्बर सम्प्रदाय के बघेरवाल .महाजन ने सा (साह सेठ) नाम के पुत्र जीजा ने वि०सं० की चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में बनवाया था। यह कीर्तिस्तम्भ आदिनाथ का स्मारक है । इसके चारों पार्श्व पर आदिनाथ की एक-एक विशाल दिगम्बर (जैन) मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। इस कीर्तिस्तम्भ के ऊपर की छत्री विजली गिरने से टूट गई
और स्तम्भ को बड़ी हानि पहुँचो थी, परन्तु महाराणा.फतह. सिंह ने अनुमान ८०००० रुपये लगाकर ठीक वैसी ही छत्री पीछे वनवादी जिससे स्तम्भ की भी मरम्मत हो गई है।
(पृ०३५२) २-महावीर स्वामी का मन्दिर जैन कीर्तिस्तम्भके पासही महा
वीर स्वामीका मन्दिर है, जिसका जीर्णोद्धार महाराणा कुम्मा के समय वि० सं० १४९५ (ई० स० १४३८ ) में ओसवाल * राजपूताने का इ० ५० जि० पृ. ३५७ । . . .
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