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मेवाड़-गौरव
कता महसूस ही नहीं करता था। यही कारण है कि आज तक भारत के अनेक नररत्नों के सम्बन्ध में ऐतिहासिक मतभेद चला
आता है जैसा चाहिये वैसा उनका परिचय ही नहीं मिलता। यही हाल राजपूताने के जैन-चीरों के सम्बन्ध में है। ये विचारे प्रधान, मंत्री, कोषाध्यक्ष, दण्डनायक आदि सब कुछ रहे, अनेक महान कार्य किये, फिर भी इनके सम्बन्ध में कुछ लिखा नहीं मिलता । अस्तु
प्रसंगवश जहाँ कहीं थोड़ा बहुत उल्लेख मिलता है, उस से ही पूर्वापर सम्बन्ध मिलाकर पाठक जान सकेंगे कि उन्होंने क्या कुछ कार्य किये।
४ अक्टवर सन् १ . สอนลงลงละลม