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मेवाड़ के धीर .. कर्माशाह का पिता तोलाशाह महाराणा साँगा का परम मित्र था। महाराणा ने उसे अपना अमात्य बनाना चाहा परन्तु उसने आदर पूर्वक उसका निषेध कर केवल श्रेष्टी पद ही स्वीकार किया वह बड़ा न्यायी, विनयी, दाता, ज्ञाता, मानी और धनी था। याचकों को हाथी, घोड़े, वस्त्र, आभूषण आदि बहुमूल्य चीजे दे देकर कल्पवृक्ष की तरह उनका दारिद्र नष्ट कर देता था। जैनधर्म का पूर्ण अनुरागी था।
धर्मरत्नसूरि संघ के सहित यात्रा करते करते जव चित्रकूट में थाये तव सूरिजी का आगमन सुनकर महाराणा साँगा अपने हाथी, घोड़े, सैन्य और वादिन वगैरह लेकर उनके सन्मुख गये। सूरिजी को प्रणाम कर उनका सदुपदेश श्रवण किया। बाद में बहुत आडम्बर के साथ संघ का प्रवेशोत्सव किया और यथायोग्य सब संघजनों को निवास करने के लिए वासस्थान दिये। तोला शाह भी अपने पुत्रों के साथ संघ की यथेष्ट भक्ति करता हुआ सूरिजी की निरन्तर धर्म देशना सुनने लगा । राणा भी सरिजी के पास आते थे और धर्मोपदेश सुना करते थे। सूरिजी के उपदेश से संतुष्ट होकर राणा (साँगा) ने पाप के मूल भूत शिकार
आदि दुर्व्यसनों को त्याग दिया। ___ वहाँ पर एक पुरुषोत्तम नामक ब्राह्मण था जो बड़ा 'गर्विष्ठ विद्वान और दूसरों के प्रति असहिष्णुता रखने वाला था । सूरिजी ने उसके साथ राजसभा में सात दिन तक वादविवाद कर उसे
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