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. . मेवाड़ के वीर होना चाहिये। प्रशस्ति में लिखा है :'श्री रत्नसिंह राज्ये राज्य व्यापार भार धौरेयः ।।
अर्थात् वह रत्नसिंह के राज्य में राज्य और व्यापार दोनों में धूरी था।
इसके पिता तोलाशाह साँगा के परम मित्र थे। साँगा जैसे वीर प्रकृति के पुरुष की मित्रता वीर ही से हो सकती है।
राणारलसिंह के दरबार में कर्माशाह का अत्यधिक मान था । वह राज-काज में प्रवीण और राणा रत्नसिंह का प्रधानथा। ___२४ से ३२ पद्य में कहा है कि कर्माशाह ने सुगुरु के पास श्री शत्रुजयतीर्थ का माहात्म्य सुन कर उस के पुनरुद्धार करने की इच्छा प्रकट की और गुजरात के सुलतान बहादुरशाह के पास से उद्धार कराने के सम्बन्ध में स्फुरन्मान (फर्मान) लेकर कर्माशाह ने अगणित द्रव्य व्यय करके सिद्धाचल का शुभ उद्धार किया। १५८७ और शक सं० १४५३ वैशाख कृष्ण ६ को अनेक श्रावक
और अनेक मुनि आचार्यों के सम्मेलन में कल्याणकारी प्रतिष्ठा कराई। . ___ पीछे के पद्यों में कर्माशाह के इस कार्य के करने के लिये उस की प्रशंसा लिखी हुई है। . :
इस उद्धार.के काम के लिये तीन सूत्रधार (सुथार) अहमदाबाद से और. १९ चित्तौड़ से गये थे। मुसलमानों के समय में नवीन मन्दिर तो क्या प्राचीन मन्दिर ही नहीं रहने पाते थे। फिर