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मेवाड़ के वीर
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मैं इतना और भी कहना चाहता हूँ कि यदि श्री० ओमाजी का यह लिखना ठीक भी मान लिया जाय कि 'महाराणा कुम्भा और सांगा आदि द्वारा उपार्जित अतुल सम्पत्ति प्रताप के समय तक सुरक्षित थी वह खर्च नहीं हुई थीं, तो वह संम्पत्ति चित्तौड़ या उदयपुर के कुछ गुप्त खजानों में ही सुरक्षित रही होगी। भले ही अकबर को उन खजानों का पता न चल सका हो, परन्तु इन दोनों स्थानों पर कवर का अधिकार तो पूरा होगया था। और ये स्थान अकबर की फौज से वरावर घिरे रहते थे, तव युद्ध के समय इन गुप्त खजानों से अतुल संपत्ति का बाहर निकाला जाना कैसे संभव हो सकता था ? और इस लिये हल्दीघाटी के युद्ध के बाद जब प्रताप के पास पैसा नहीं रहा, तब भामाशाह ने देश हित के लिये अपने पास से खुदके उपार्जन किये हुये द्रव्य से--भारी सहायता देकर प्रताप का यह अर्थ - कष्ट दूर किया है; यही ठीक, जँचता है । रही अमरसिंह और जगतसिंह द्वारा होने वाले खर्चों की बात, वे सब तो चित्तौड़ तथा उदयपुर के पुनः हस्तगत करने के बाद ही हुये हैं और उनका उक्त गुप्त खजानों की सम्पत्ति से होना संभव है, तव उनके आधार पर भामाशाह की उस सामयिक विपुल सहायता तथा भारी स्वार्थ त्याग पर कैसे आपत्ति की जा सकती
? अतः इस विषय में प्रो. जी. का कथन कुछ अधिक युक्तियुक्त प्रतीत नहीं होता। और यही ठीक जँचता है कि भामाशाह के इस अपूर्व-त्याग की बदौलत ही उस समय मेवाड़ का उद्धार हुआ था, और इसी लिये आज भी भामाशाह मेवाड़ोद्धारक के