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राजपूतों के जैन वीर
जिस धन के लिये केकई ने राम को १४ वर्ष के लिये घनवास भेजा, जिस धन के लिये पाण्डव और कौरवों ने २० अचौहणी सेना कटवा डाली, जिस धन के लिये बनवीर ने बालक उदयसिंह की हत्या करने की असफल चेष्टा की, जिस धन के लिये मारवाड़ के कई राजाओं ने अपने पिता और भाइयोंका संहार किया, जिस धन के लिये लोगों ने मान वेचा, धर्मः चेचा, कुलगौरव बेचा सांथ ही देश की स्वतंत्रता बेची; वही धन भामाशाह ने देशोद्वार के लिये प्रतापको अर्पण कर दिया। भामाशाहका यह अनोखा त्याग धनलोलुपी मनुष्यों की बलात् आँखें खोल कर उन्हें देशभक्ति का पाठ पढ़ाता है।
भारमल के स्वर्गवास होने पर राणा प्रताप ने भामाशाह को अपना मंत्री नियत किया था। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद जब भामाशाह मालवे की ओर चला गया था तब उसकी अनुपस्थिति में रामा सहाणी महाराणाके प्रधान का कार्य करने लगा था । भामाशाह के आने पर रामा से प्रधान का कार्य - भार लेकर पुनः भामाशाह को सौंप दिया गया उसी समय किसी कविका कहा 'गया प्रचीन पद्य इस प्रकार है:
भामो परधानी करे रामो कींधो रद्द * ।
भामाशाह के दिये हुये रुपयों का सहारा पाकर राणा प्रताप ने फिर बिखरी हुई शक्ति को बटोर कर रणभेरी बजादी । जिसे सुनते ही शत्रुओं के हृदय दहल गए। कायरों के प्राण पखेरू उड़
+-- राजपूताने का इतिहास ती० ख०:- पृ. ७४३ ।