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मेवाड़ के वीर छोड़ कर अपने प्रतिद्वन्दियों से जूम.करं अत्यन्त वीरता पूर्वक युद्ध किया। हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात् यह मालवें की ओर चला गया। वहाँ शाहबापाखों ने जा घेरा, उसके साथ युद्ध करता हुआ वसी के पास जा पहुंचा और वहाँ घायल होने के कारण बेहोश होकर गिर पड़ा। वसी के रावं सांईदास देवड़ा, घायलें वाराचन्द को उठाकर अपने किले में ले गया और वहाँ उस की" अच्छी परिच- की । ताराचन्द 'गोड़वाई प्रदेश का हाकिम (गवर्नर) भी रहा था और हल्दी घाटी के युद्ध से पूर्व वह सादडी, में रहता था। उसने सादड़ी के बाहर एक बारहदरी और बावड़ी धनवाई उसके पास ही ताराचन्द उसकी चार खियाँ एक खवास छः गायने एक गवैया और उस गवैये की औरत की मूर्तियाँ पत्थरों पर खुदी हुई हैं।
[२५ अक्टूबर सन् ३२]
भामाशाह कहत महादानी उन्हें चाटुकार मतिर । पीठहुँ को नहिं देत जे, कपणदान रण-सूर ।'
-वियोगहरि स्वाधीनता की लीलास्थली वीरअसवा मेवाड़-भूमि के '
इतिहास में भामाशाह का नाम स्वर्णाक्षरों में अङ्कित है। हल्दीघाटी का युद्ध कैसा भयानक हुआ, यहः पाठकों ने
राज० पू० का इ० ती० ख० पृ. ७४३१