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मेवाड़ के वीर केवल ५४ पंक्ति हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४० से ५० अक्षर अंकित हैं । इस लेख में विक्रम संवत् ३६८७ में चित्रकूट (चित्तौड़) निवासी ओसवाल-कुल-मणि कर्माशाह द्वारा शत्रुजय का पुनरुद्धार तथा नवीन प्रतिष्ठा कराये जाने का वर्णन है ।।
प्रारम्भ में इस शिलालेख की गद्य पंक्तियों में लिखा है कि "संवत् १५५७ में जिस समय कर्माशाह ने प्रतिष्ठा कराई तब उस समय गुजरात में सुलतान वहादुरशाह राज्य करता था और वहादुरशाह की ओर से सौराष्ट्र.(सोरठ-काठियावाड़) का राज्यकारोवार सूबेदार मझादरवान (अगेरमुमाहिंदखान) चलाता था।
पद्य १ से ७ में मेदपाट (मेवाड़) की राजधानी चित्रकूट (चित्तौड़) और उसके १ कुंभराज, राजमल्ल, ३ संग्रामसिंह,
और ४ रत्नसिंह इन चार राजाओं का उल्लेख है । प्रतिष्ठा-समय राणा रत्नसिंह राज्य करता था । ८ से २२ तक के श्लोकोंमें कर्माशाह के वंश और कुटुम्ब का संक्षिप्त वर्णन हैं। यथाः-गोपगिरि (वर्तमान ग्वालियर) में श्री आमराज एक राजपूत निवास करते थे। वह वप्पमट्टिसूरि जैनाचार्य के उपदेश से प्रभावित हो कर जैनधर्म में दीक्षित हो गये। उनकी वैश्यकुलोत्पन्न सहधर्मिणों की कूख से एक पुत्र रत्न हुआ जो राजकोठारी--(भण्डारी) प्रसिद्ध हुआ और वह श्रोसवाल जाति में सम्मलित किया गया। ।
इसी वंश में पीछे एक सारणदेव प्रसिद्ध पुरुष हुआ जिसको ९वीं पीढ़ी में इस तीर्थोद्धार के कर्ता कर्माशाह ने जन्म लिया।'
वे पीढ़ी निम्न प्रकार हैं: