________________
राजपूताने के जैनवीर हुई पार्श्वनाथ की एक मूर्ति है, जिस पर खुदे हुए लेख से पाया. जाता है कि वह वि० सं० १६५६ में बनी थी। लोग यह भी कहते हैं कि यहाँ मूर्ति के ठीक सामने के एक भाग में एक छिद्र था, जिसमें होकर पौष शुक्ला १० को सूर्य की किरणें इस प्रतिमा पर पड़ती थी, उस समय यहाँ एक बड़ा भारी मेला भरता था, परन्तु महाराणा संरूपसिंह के समय से यह मेला वन्द हो गया । पीछे से जीर्णोद्धार कराते समय उधर की दीवार ऊँची बनाई गई, जिस से अव सूर्य की किरणें मूर्ति पर नहीं गिरतीं। थोड़े पूर्व इस मंदिर की फिर मरम्मत होकर सारे मन्दिर पर चूना पोत दिया गया जिससे इसके श्वेत पाषाण की शोभा नष्ट हो गई है। कई देशी एवं विदेशी श्वेताम्बर जैन यहाँ यात्रार्थ आते हैं और एक धर्मशाला भी यहाँ वन गई हैं।" (पृ० ३६७-६८)
. २० नवम्बर सन् ३०
।