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मेवाड़-परिचय लिये शुद्ध वस्त्र भी वहाँ हर वक्त तैयार रहते हैं और जिन को
आवश्यकता हो उनको वे मिल सकते हैं। मन्दिर एवं धनाढ्यों की तरफ़ से कई एक धर्मशालायें भी बन गई हैं। जिससे यात्रियों को धूलेव में ठहरने का बड़ा सुभीता रहता है। ___ उदयपुर से ऋषभदेव तक का सारा मार्ग बहुधा भीलों ही की वस्ती वाले पहाड़ी प्रदेश में होकर निकलता है, परन्तु वहाँ पक्की सड़क बनी हुई है और महाराणा साहब ने यात्रियों के आराम के लिये ऋषभदेव के मार्ग पर काया, वारापाल तथा टिडीगाँवों में पक्की धर्मशालाएँ बनवा दी हैं। परसाद में भी पुरानी कंची धर्मशाला बनी हुई है । मार्ग निजेन बन तथा पहाड़ियों के वीच होकर निकलता है तो भी रास्ते में स्थान स्थान पर भीलों की चौकियाँ विठला देने से यात्रियों के लुट जाने का भय बिल्कुल नहीं रहा । प्रत्येक चौकी पर राज्य की तरफ से नियत किये हुये कुछ पैसे देने पड़ते हैं । ऋषभदेव जाने के लिये उदयपुर में बैलगाड़ियाँ तथा ताँगे मिलते हैं और अब तो मोटरों का भी प्रबन्ध हो गया है । (पृ० ३४४-४९) . ऋषभदेव का मन्दिर- .. . . माण्डलगढ़ किले में सागर और सागरी नाम के दो जलाशय हैं, जिनका जल दुष्काल में सूख जाया करता था, इस लिये वहाँ के अध्यक्ष (हाकिम ) महता अगरचन्द्र ने सागर में दो कुए . .:: .. सरकारी हस्पताल और औषधालय हैं जहाँ दवा मुंपत दीजाती है। एक वाचनालयं भी है। गोयलीय ! ..