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मेवाड़ - परिचय
५३.
जी का विम्व कहते हैं । उपर्युक्त ७६ मूर्तियों में से १४. पर लेख: नहीं है । लेखवाली मूर्तियों में से ३८ दिगम्बर सम्प्रदाय की और ११ श्वेताम्वरों की हैं। शेष पर लेख अस्पष्ट होने या चूना लग जाने के कारण उनका ठीक २ निश्चय नहीं हो सकाः । लेखः वाली मूर्तियाँ वि० सं० १६११ से १८६३ तक की हैं और उन पर खुदे हुये लेख जैनों के इतिहास के लिये बड़े उपयोगी हैं ।
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नौचौकी मंडप के दक्षिणी किनारे पर पाषाण का : एकः छोटासा स्तम्भ खड़ा है, जिसके चारों ओर तथा ऊपर नीचे छोटे छोटे १० ताक खुदे हैं । मुसलमान लोग इस स्तम्भ को मसजिद
का चिन्ह मानते हैं और उसके नीचे की परिक्रमा में खड़े रहकर वे लोवान जलाते, शीरनी (मिठाई) चढ़ाते और धोक देते हैं +1
उदयपुर-राज्य के अधिकार में जो विष्णु मन्दिर हैं, उनके समान यहाँ भी विष्णु के जन्माष्टमी, जलझूलनी, आदि त्यौहार मन्दिर की तरफ से मनाये जाते हैं। चौमास में इस मन्दिर में श्रीमद्भागवत की कथा होती है, जिस की भेट के निमित्त राज्य की तरफ से ताम्रपत्र- कर दिया गया है और ऋषभनाथजी के भोग के लिये एक गाँव भी भेट हुआ था । मन्दिर के प्रथम द्वार, के पास खड़े हुये महाराणा संग्रामसिंह ( दूसरे ) के शिलालेख में बेगार की मनाई करने, ऋषभदेवजी की रसोई का काम नाथजी
+ मुसलमान लोग मन्दिरों को तोड़ देते थे, जिससे उनके समय के बने हुये बड़े मन्दिरों आदि में उनका कोई पवित्र चिन्ह इस अभिप्राय से बना दिया जाता था कि उसको देखकर वे उनको न तोड़े ।