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राजपताने के जैन-चीर खुदवा दिये, जिनमें जल कभी नहीं टूटता... यहाँ एक ऋषभदेव का जैनमन्दिर है। (पृ० ३६१) वीजोल्या में जैनमंदिर
बीज़ोल्यों के कस्बे से अग्निकोण में अनुमान एक मील के अंतर पर एक जैनमन्दिर है, जिसके चारों कोनों पर एक-एक छोदा मन्दिर और बना हुआ है। इन मन्दिरों को पंचायतन कहते है और ये पाँचों मन्दिर कोट से घिरे हुये हैं। इनमें से मध्य का अर्थात् मुख्य मन्दिर पार्श्वनाथ का है। मन्दिर के बाहर दो चतुउस स्तम्भ बने हुये हैं, जो भट्टारकों की नसियाँ हैं । इन देवालयों से थोड़ी दूर पर जीर्ण-शीर्ण दशा में रेवतीकुण्ड' हैं । पहले दिगम्बर सम्प्रदाय के पोरवाड़ महाजन लोलाक ने यहाँ पाश्वनाथ का तथा सात अन्य मन्दिर बनवाये थे, जिनके टूट जाने पर ये पाँच मन्दिर बनाये गये हैं। यहाँ पर पुरातत्त्ववेताओं का ध्यान विशेष आकर्षित करने वाली दो वस्तुएँ हैं, जिनमें से एक तो लोलाक का खुदवाया हुआ अपने निर्माण कराये हुये देवालयों के सम्बन्ध का शिलालेख और दूसरा 'उन्नतिशिखरपुराण' नामक दिगम्बर जैनमन्थ है। बीजोल्यां के निकिट भिन्न २ आकृति के चपटे कुदरती चट्टान अनेक जगह निकले हुए हैं । ऐसे ही कई घवान इन मन्दिरों के पास भी हैं, जिनमें से दो पर ये दोनों खुदवाये गये हैं। विक्रम संवत् १२२६ फाल्गुण वदि ३. का चौहान राजा सोमेश्वर के समय का लोलाक का खुदवाया हुआ शिलालेख इतिहास के लिये बड़े महत्त्व का है, क्योंकि उसमें सामन्त