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मेवाड़-परिचय चौक श्राता है, वहीं दूसरा द्वार है, जिस के बाहर दोनों ओर फाले पत्थर का एक-एक हाथी खड़ा हुन्ना है । उत्तर की तरफ के हायी के पास एक हवनकुंड बना है, जहाँ नवरात्रि के दिनों में दुर्गा का हवन होता है । उक्त द्वार के दोनों ओर के ताफों में से एक में ब्रह्मा की और दूसरे में शिव की मूर्ति है, जो पीछे से विठलाई गई हो, ऐसा जान पड़ता है। इस द्वार से इस सीढ़िया चढ़ने पर मन्दिर में पहुँचते हैं और उन सीढ़ियों के ऊपर के मंडप में मध्यम फ़द के क्षार्थी पर बैठी हुई मरुदेवी (ऋषभनाथ फी माता) की मूर्ति है। सीढ़ियों से आगे बांई ओर 'श्रीमद्भागवत' का चबूतरा बना है, जहाँ चातुर्मास में भागवत की कथा बचती है। यहाँ से तीन सौदियाँ पदने पर एक मंडप पाता है, जिसको ९ स्तम्भ होने के कारण 'नौचौकी' कहते हैं । यहाँ से तीसरे द्वार में प्रवेश किया जाता है । उक्त धार के बाहर उत्तर के ताक में शिव की और दक्षिण ताफ में सरवती की मूर्ति स्थापित है । इन दोनों फे यासनों पर वि० सं० १६७६ के लेख खुदे हैं। तीसरे द्वार में प्रवेश करने पर खेला मंडप (अन्तराल) में पहुँचते हैं, वहाँ से आगे निज मन्दिर (गर्भगृह) अपभदेव की प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के ऊपर ध्यजादंड सहित विशाल शिखर है और खेला मंडप, नीचांकी तथा मरुदेवी पाले मंडप पर गुंबज है । मन्दिरके इत्तरी, पश्चिमी और दक्षिणी पार्श्व में देवकुलिकाओं की पंक्तियाँ हैं जिनमें से प्रत्येक के मध्य में मंडप सहित एक-एक मंदिर घना है। देवकुलिकाओं और मन्दिरों के बीच भीतरी परिक्रमा.है।"