________________
मेवाड़ - परिचय :
४३
·
लोग कहते हैं कि यहाँ पर राणा कुम्भा को राजकुमारी का विवाह हुआ था, जिसकी यह चंवरी है । वास्तव में इतिहास:: के अन्धकार में इसकी कल्पना की सृष्टि हुई है, क्योंकि एक स्तम्भं पर खुदे हुए निं० सं० १५०५ ( ई० स० १४४८ ) के शिला लेखों से ज्ञात होता है कि राणा कुम्भा के भंडारी ( कोषाध्यक्ष ) वेलांक ने जो शाह केल्हा का पुत्र था, शान्तिनाथ का यह जैनमन्दिर बदवाया और उसकी प्रतिष्ठा खरतर गच्छ के आचार्य जिनसेनसूरि ने की थी । जिस स्थान को लोग चवरी 'बतलाते हैं 'वह वास्तव में उक्त मूर्ति की वेदी है और संभव है कि मूर्ति चौमुख (जिसके चारों ओर एक एक मूर्ति होती है) हो । (पृ०३५६)
""
2
यह इतिहास- प्रसिद्ध दुर्ग, भारत के ही नहीं वरन् समस्त संसार के फ़िलों में शिरमौर है । इसी किले के लिये यह कहावत प्रसिद्ध है कि- "गढ़ तो चित्तौड़गढ़ और सब गढ़या हैं"। यह दुर्ग, अपनी सुन्दरता अथवा मजबूती के कारण विख्यात् नहीं है । सुन्दरता और मज़बूती में तो यह किला शायद संसार के किलों की श्रेणी में भी न रखा जा सके, और अब तो यह खण्डहर हो गया है । रसिक यात्रियों के मनोरंजन के लिये यहाँ कुछ भी शेष 'नहीं है । पर जो स्वतन्त्रता के उपासक हैं, उनका यह महान् तीर्थ है, इसका प्रत्येक अणु उनका देवता है, इसकी रज को मस्तक पर * लगाने से वह कृत्कृत्य होजाते हैं और इसकी शौख गाथा सुनतेर उन्मत्त हो नाचने लगते हैं अथवा सर धुन कर रोने लगते हैं |
vi