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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
कांपते हैं, तो उस मृत्यु को साक्षात् ला देना या मार डालने का भय दिखाना कितना भयंकर और दुःखजनक होता है ।
१४-असंयम-पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय इन सभी प्रकार के स्थावर और त्रस जीवों के साथ यतना, सावधानी या विवेकपूर्वक व्यवहार न करने से या स्थावर (एकेन्द्रिय) जीवों के शरीर (मिट्टी, पानी, हवा अग्नि और वनस्पति) का अनावश्यक, निरर्थक एवं अनाप-सनाप, बेमर्यादा और बेखटके उपयोग करने से प्राणिवध रूप असंयम होता है। यानी इन पर संयम न रखना प्राणिवध का कारण होने से असंयम को भी प्राणिवध का पर्यायवाची कहा गया है। अथवा दूसरी तरह से असंयम का यों भी अर्थ हो सकता है, कि शरीर, मन, वचन, प्राण, इन्द्रिय आदि को व्रत, नियम, तप, जप, त्याग, प्रत्याख्यान, सामायिक, ध्यान, स्वाध्याय, धर्माचरण या धर्मक्रिया आदि में न लगाए रखने से ये सब खुले (अनियंत्रित) होकर बेखटके हिंसाजन्य प्रवृत्ति करते हैं, वही असंयम है। इस प्रकार असंयम हिंसा का जनक होने से इसे भी प्राणिवध का भाई मान लिया गया।
एक व्यक्ति किसी समय हिंसा नहीं कर रहा है, बगुले की तरह निश्चेष्ट है, अपनी इन्द्रियों और मन को निश्चेष्ट बनाकर बैठा है, अथवा शोकमग्न या रुग्ण आदि होने के कारण घर में बैठा है, किन्तु उसने संकल्पी हिंसा करने का त्याग नहीं किया है, हिंसा से विरत नहीं हुआ है, तो उसे हिंसा का पाप लगता रहेगा। इस दृष्टि से असंयम का अर्थ हिंसा से अविरति भी होता है।
१५-कटफमर्दन–सेना लेकर आक्रमण करके जीवों का मर्दन करना, कुचल डालना या रौंद डालना अथवा. मसल डालना कटकमर्दन है। अथवा युद्ध में झौंक कर या लड़ाकर उनका चकनाचूर करा देना भी कटकमर्दन कहलाता है। कई बार राष्ट्रों के राष्ट्रनायक अपने विजेता बनने के नशे में अथवा अपनी राज्यवृद्धि की लिप्सा के कारण या सत्ता को टिकाए रखने के लिए अनावश्यक और अकारण ही दूसरे देश पर चढ़ाई कर देते हैं और अपनी उस स्वार्थ सिद्धि के लिए निर्दोष सेना को अपरिमित संख्या में झौंक देते हैं। निर्दोष सेना मारी जाती है या वह उन राष्ट्रनायकों का आदेश पाकर निर्दोष प्रजा को भी कुचलने, लूटने, आग लगाने पर उतारू हो जाती है, वहाँ की बहन-बेटियों के साथ जबरन बलात्कार करके उन्हें मौत के मुंह में धकेल देती है, यह महाहिंसा कटकमर्दन ही है । वैसे भी देखा जाय तो युद्ध में असंख्य प्राणियों का वध होता है। इसीलिए पंचमहाव्रती साधु इससे सर्वथा दूर रहते हैं। व्रतधारी श्रावक यदि शासक हो और राष्ट्र की सुरक्षा के लिए, अन्याय का प्रतिकार करने के लिए, विवश होकर उसे शत्रुशासक के साथ युद्ध करना ही पड़े तो वह जहाँ तक हो सके उसे टालने का यत्न करता है, निरुपाय हो जाने पर ही