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इसी प्रकार कनाडा के ओंटारियो प्रान्त में भी दिल्ली नगर स्थापित एवं प्रसिद्ध है, भले ही वहाँ भारतीय- दिल्ली के समान लाल किला, कुतुबमीनार आदि न हों, फिर भी, वहाँ के निवासी अपने को दिल्ली वाला कहलाने में गौरव का अनुभव करते हैं ।
अपने
कहा जाता है कि अमीर खुसरो (12वीं-13वीं सदी) दिल्ली से इतना अधिक आकर्षित था कि उसने प्रारम्भ में एक मित्र से कहा था— कि "या तो मुझे घोड़ा ला दो या अस्तबल के दरोगा से जाकर कहो कि वह मुझे सामान ढोने वाला कोई सहायक दे दे या किसी को हुक्म दे दो कि मुझे कोई सवारी मिल जाय, जिससे कि मैं उस पर बैठकर देला (दिल्ली) जा सकूँ।"
ढिल्ली - दिल्ली : स्थापना सम्बन्धी विभिन्न मान्यताएँ
वस्तुतः दिल्ली का इतिहास बहुरंगी है। युगों-युगों से वह विविध कथा-वार्ताओं की नायिका रही है । यह भी एक रहस्य बना हुआ रहा कि आखिर दिल्ली का नाम दिल्ली कब और कैसे रखा गया ?
डॉ. डंकन फोर्वस के अनुसार वह डेल्हे अर्थात् उच्चस्थल पर स्थित होने के कारण पड़ा। उसका एक नाम दिल अथवा दिलवाली भी बताया जाता है, जो वहाँ के निवासियों के कारण प्रसिद्ध हुआ (जैसे दिलवाला) । ठक्कुर फेरु के उल्लेखानुसार उस समय उसका सिक्का दिलवाल के नाम से ही प्रसिद्ध था । कुछ लोगों का यह भी विचार है कि एक पिलपिले स्थल का नाम दिल अथवा दिली था क्योंकि उसकी भूमि में कीली आदि गाड़ना सम्भव न था ।
कुछ विद्वानों का यह भी कथन है कि दिल्ली उत्तर, दक्षिण, पूर्व या पश्चिम वासियों के लिये दहलीज या चौखट के समान थी। कुछ विद्वानों का यह भी विचार है कि कन्नौज के राजा दिलू ने अपने नाम पर दिल्ली की स्थापना कराई थीं। कुछ विद्वानों के अनुसार पाण्डवों ने कई पीढ़ियों तक जिस इन्द्रप्रस्थ नगरी में राज्य किया था, वह तो उजड़ गई और उसी भूमि पर दिल्ली की स्थापना की गई ।
इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि भारत भ्रमण करने वाले चीनी यात्रियों - फाहियान एवं हवेनत्सांग ने अपने भारत-भ्रमण के क्रम में जहाँ अनेक प्रसिद्ध नगरों की चर्चा की, वहीं उन्होंने दिल्ली का नामोल्लेख तक नहीं किया । गुप्तवंश के बाद वर्धन वंश के सम्राट हर्षवर्धन के काल में अवश्य ही दिल्ली को ढिली या ढिल्ली के रूप में उल्लिखित पाया गया है। वर्तमान दिल्ली के पालम क्षेत्र की एक प्राचीन बावड़ी में एक शिलालेख भी मिला है, जिससे विदित होता है कि वह ढिल्ली, हरियाणा - जनपद की एक नगरी के रूप में प्रसिद्ध थी । इसका समर्थन बुध श्रीधर के पासणाहचरिउ की आद्य प्रशस्ति से भी होता है ।
दिल्ली के महत्व से आकर्षित होकर कुछ प्राचीन उल्लेखों एवं प्रशस्तियों के आधार पर कुछ इतिहासकारों ने पुनः उसकी स्थापना के विषय में अन्य खोजें भी की हैं, जो निम्न प्रकार हैं
(क) अबुल फज्ल' के अनुसार गुप्त या बलभी सं. 416 (सन् 734 के लगभग) दिल्ली की स्थापना की गई। (ख) खड्गराय' कृत गोपाचल - आख्यान के अनुसार बिल्हण देव ने वि.सं. 792 (सन् 735) में दिल्ली की स्थापना की। (ग) मुहणोत नैणसी ख्यात' के अनुसार तोमर - राज्य ( ढिल्ली) की स्थापना वि. सं. 809 वैसाख सुदी 13 (सन् 752 )
के दिन सम्पन्न हुई । और,
(घ) राजावली' (वि.सं. 1685 के अनुसार प्रथम तोमरवंशी राजा आदि- राणा- जाजू हुआ, जिसका राज्यकाल वि.सं. 839 (सन् 782 ) था ।
1-4. दे. दिल्ली के तोमर, पृ. 190 ।
5.
दिल्ली के तोमर, पृ. 191 ।
प्रस्तावना :: 39