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(135) धरणेन्द्र ने पार्श्वप्रभु के ऊपर अपने सात फणों का मण्डप तान दिया (136) कमठासुर द्वारा धरणेन्द्र पर बज्र-प्रहार कर दिया गया (137) क्रोधावेश में वह कमठ धरणेन्द्र पर भी अधिकाधिक उपसर्ग करने लगता है (138) विभिन्न उपसर्गों के मध्य भी पार्श्व को केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है (139) सुरेन्द्र पार्श्व प्रभु के समीप आता है तथा क्रोधित होकर वह कमठ पर
बज्रदण्ड से प्रहार करता है (140) समवशरण की रचना : आलंकारिक वर्णन (141) द्वादश प्रकोष्ठों वाले समवशरण की रचना (142) सुरेन्द्र द्वारा पार्श्व की स्तुति (143) हस्तिनागपुर-नरेश स्वयम्भू-राजा को वैराग्य उत्पन्न हो जाता है (144) राजा स्वयम्भू स्वयं ही पार्श्व से दीक्षा ग्रहण कर लेता है
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नौवीं सन्धि (पृष्ठ 175-196) लोकाकाश-वर्णन नरक-वर्णन नरक-वर्णन (जारी) नारकियों की आयु का वर्णन नारकियों का बहुआयामी रोचक वर्णन भवनवासी एवं व्यन्तरदेवों के नाम तथा उनके निवास-स्थल ज्योतिषी देवों के निवास-स्थलों की पारस्परिक दूरी स्वर्ग-कल्पों की संरचना विविध स्वर्गों के देव-विमानों की संख्या देवों एवं ग्रह-नक्षत्रों का आयु-प्रमाण वैमानिक देवों की आयु एवं ऊँचाई का प्रमाण विविध प्रकार के देवों की दृष्टि का प्रसार कहाँ-कहाँ तक? तथा अन्य वर्णन मध्यलोक वर्णन : द्वीप, पर्वत एवं क्षेत्र आदि एवं अन्य भौगोलिक इकाइयों का वर्णन निषध आदि पर्वतों एवं भस्त आदि क्षेत्रों का वर्णन पूर्व-विदेह क्षेत्र का वर्णन छह कुलाचलों पर स्थित छह महाहृदों का वर्णन धातकी खण्ड द्वीप एवं कालोदधि समुद्र आदि का वर्णन अढाई द्वीप तथा पर्वतों, नदियों, क्षेत्रों एवं समद्रों का वर्णन मनुष्यों की गमन-सीमा आदि का वर्णन तथा विभिन्न द्वीपों एवं समुद्रों में सर्यों एवं चन्द्रमाओं की संख्या एवं उनकी गति अकृत्रिम जिन-मन्दिरों की संख्या एवं उनका रोचक वर्णन कमठासुर अपने पापों का प्रायश्चित करता है और जिन-दीक्षा ले लेता है
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विषयानुक्रम :: 77