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The Kukkuta snake (Sarpa ), elephant's enemy of previous life bites him bitterly.
इक्कहि दिणि गउ पाणिय- णिमित्तु हाउ णा असणघोसु
पल्लट्टइ पाणिउ पिएवि जाम णीसरेवि ण सक्कइ सरहो केम हँ अवसर करि सुमिरइ सचित्ति बारह- अणुपेह खीणदेहु एक्कु जि महु अप्पर णाणवंतु सेसा बाहिर भावा हवंति
महुतहु कोवि उ हउँ ण कासु इम असणिघोसु करि सरइ जाम
सरवर वयखीणु पियास- घित्तु ।। करिणिए सहुँ णव- वारिहरघोसु ।। चिक्कण चिक्खिल्लि चहुटु ताम ।। मक्खियउलु विडिउ सिंभि जेम ।। परमिट्टि पाय-पंकय पवित्ति ।। परिहरिय करिणि रइ-बद्ध-णेहु । । सासउ सद्दंसण- लच्छिवंतु ।। संजो
लक्खण मुणि चवंति ।। जिण धम्मु मुप्पिणु सुहपयासु ।। दिट्ठउ कुक्कड - सप्पेण ताम ।।
घत्ता - चिर-बइरु - सरेप्पिणु रोसु-करेप्पिणु कुंभत्थलि वइसेप्पिणु । दसणग्गपहारहि अइ अणिवारहि दट्ठउ सिरु-विहुणेपिणु ।। 213 ।।
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पूर्व-जन्म का शत्रु -- कुक्कुट - सर्प उस गजराज को हँस लेता है --
अन्य किसी एक दिन व्रत से क्षीण हुआ, नवीन मेघ के समान घोष अर्थात् गर्जना करता हुआ, हथिनियों के साथ यूथाधिप वह गजराज अशनिघोष प्यास से व्याकुल होकर पानी पीने के निमित्त सरोवर में गया। जब वह पानी पीकर लौट रहा था, तभी वह चिकने कीचड़ में फँस गया और वह सरोवर से उसी प्रकार नहीं निकल सका, जिस प्रकार कि चिकने कफ में फँसा हुआ मक्खियों का समूह चिपक कर नहीं निकल पाता।
उस दुखद अवसर पर वह गजराज अपने चित्त में परमेष्ठी के पवित्र चरण-कमलों का स्मरण करने लगा । क्षीण देह वाले उस गजराज ने अपनी हथिनी के प्रति प्रेम-राग को छोड़ दिया और बारह - अनुप्रेक्षाओं का ध्यान करता हुआ विचार करने लगा, कि मेरा आत्मा अकेला है, ज्ञानवान् है, शाश्वत है और सम्यग्दर्शन रूपी लक्ष्मी से समृद्ध है। शेष बाह्य-भाव-पदार्थ हैं, जो संयोगवश ही मेरे लक्षण बने हुए हैं, ऐसा मुनियों का कथन है। सुख- प्रकाशक जिन धर्म को छोड़कर मेरा कोई भी शरण नहीं है, मैं भी किसी का नहीं हूँ ।
वह अशनिघोष जब इस प्रकार का स्मरण कर ही रहा था कि तभी कुक्कुट सर्प ने उसे देखा
घत्ता - और उसने पूर्व जन्म के बैर का स्मरण कर उस पर रुष्ट होकर, वह उसके कुम्भस्थल पर बैठ गया तथा अपने अत्यन्त अनिवार दाँतों के अग्रभाग के तीखे प्रहारों से उसके शीर्ष का वेधन कर उसे डँस लिया ।। 213 ।।
246 :: पासणाहचरिउ