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12/15 An account of various re-births of Royal Priest-Viswabhūti and his sons. अरविंद णराहिउ रज्जे णाउ
जं असि विप्प-कुलि महिइ सणाउ।। तं एव्वहिँ पुणु कम्महो वसेण विरइउ भूदेवेहिँ सहरसेण।। विरयंतु आलि-वालहिँ समाणु पर-घर-कय-भोयणु वट्टमाणु।। खरयर-जठराणल डज्झमाणु
दुम्मणु विवणम्मणु हिंडमाणु।। सुसियाणणु णिय-चिरकम्मणीउ तव-तत्त-देह तावस-समीउ।। तहिँ लइय दिक्ख तउ करइ जाम अहि-करणे तवसिहिँ हसिउ ताम।। एत्थंतरे अणसण-विहि करेवि जायउ असुराहिउ लहु मरेवि।। जो वइजयंति मुणिणाहु जाउ तत्थहो चएवि सो हउँ जि आउ ।। जो कमठु सहोयरु पुव्वि आसि णीसेस-दोस-संताणरासि ।। सो एहु असुराहिउ मज्झु जेण उवसग्गु विहिउ मारण-मणेण।।
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घत्ता- अरविंद णरेसहो पालिय-देसहो पढम-जम्मि जो बंभण।
होतउ उवरोहिउ रिउ-अविरोहिउ सयलावयहँ णिसुंभणु।। 224 ||
12/15 राजपुरोहित विश्वभूति एवं उसके पुत्रों के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन पूर्व जन्म में अरविन्द नराधिप के राज्य में विप्र-कुल में उसका जो प्रतिष्ठित नाम था, कर्म के वश से वही नाम उसे इस जन्म में भी मिला। सभी ब्राह्मणों ने हर्षपूर्वक उसे इसी मठ (कमठ) के नाम से पुकारा। वह बच्चों के साथ आलि (क्रीड़ाएँ) करता रहता और घर-घर में भोजन करता हुआ रहता था किन्तु प्रचण्ड जठराग्नि से वह जलता ही रहता था।
__ अन्य किसी एक दिन दुर्मन, विपन्न मन से हीडता-भटकता हुआ, शुष्कमुख वाला वह दरिद्र विप्र-पुत्र, अपने शुभकर्मों के उदय से तपस्या से तप्त-देह वाले एक तापस के समीप पहुँचा और वहीं दीक्षा लेकर वह बाल-तप करने लगा। कठोर तप करने पर तापसों ने उसकी हँसी उड़ाई।
इसी बीच अनशन-विधि करके वह शीघ्र ही मरा और असुराधिप हो गया। उधर, वैजयन्त-स्वर्ग में जो मुनिनाथ का जीव सुरेन्द्र हुआ था, वह भी वहाँ से च्युत होकर अब वही मैं यहाँ उत्पन्न हुआ हूँ। समस्त दोषों के लिये भण्डारगृह के समान जो पूर्वजन्म का उसका सहोदर भाई–कमठ था, वही मरकर अब यह असुराधिप हुआ है, जिसने मुझे जान से मार डालने के मन से मेरे ऊपर उपसर्ग किया है।
घत्ता- पूर्व जन्म-काल में मैं देश के पालक अरविन्द नरेश्वर के राज्यकाल में उनका विश्वभूति नामका जो
ब्राह्मण-पुरोहित था, जो कि शत्रुजनों का अविरोधी तथा समस्त आपदाओं का विनाशक था और-।। 224।।
पासणाहचरिउ :: 257