________________
धातकीखण्ड - द्वीप (9/17) एवं पुष्करार्ध-द्वीप- 12/7/12
सम्मेदाचल-12/2/11
अंग जनपद- 2/18/10
तिलोयपण्णत्ती के अनुसार उक्त दोनों द्वीपों के उत्तर एवं दक्षिण में दो-दो इष्वाकार पर्वत हैं, जिससे उक्त दोनों द्वीपों के दो खण्ड हो गये हैं। इन दोनों की पूर्व एवं पश्चिम दिशा में 2-2 मेरु हैं अर्थात् दो मेरु धातकीखण्ड में हैं तथा दो मे पुष्करार्ध में। जम्बूद्वीप से दूनी रचना धातकीखण्ड द्वीप की तथा धातकीखण्ड द्वीप के समान ही रचना पुष्करार्ध द्वीप की है।
जैन इतिहास के अनुसार सम्मेदाचल प्रस्तुत ग्रन्थ के महानायक तीर्थंकर पार्श्व का मुक्ति-स्थल है । अतः यह एक सिद्धक्षेत्र के रूप में सुप्रसिद्ध एवं वन्दनीय माना गया है। यहाँ से ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ एवं महावीर को छोड़कर अन्य सभी तीर्थंकर मोक्ष को प्राप्त हुए हैं जैसा कि आचार्य कुन्दकुन्द (ई.पू. 12) ने स्पष्ट लिखा है
वीसं तु जिणवरिंदा अमरासुरवंदिदा धुदकिलेसा ।
सम्मेदे गिरि-सिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं । । - (णिव्वाण भत्ति, 2 )
उक्त सम्मेदाचल वर्तमान झारखण्ड - प्रान्त के हजारीबाग जिले में कलकत्ता- बम्बई रेल मार्ग पर स्थित पारसनाथ-स्टेशन से लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। इस पर्वत की कुल ऊँचाई 4488 फीट एवं घेरा लगभग 28 कि.मी. है। प्राचीनकाल से ही श्रमण- समाज तथा सराक-जाति के लोग सम्मेदाचल की तीर्थयात्रा करते रहे हैं। जब शीघ्रगामी यातायात के आविष्कार भी न हुए थे, उस समय भी तीर्थभक्त लोग बैलगाड़ी, पैदल आदि साधनों से तीर्थयात्राएँ किया करते थे। इस विषय पर 17वीं सदी के महाकवि बनारसीदास कृत अर्धकथानक (पद्य 244-243) तथा आरा (बिहार) के जैन सिद्धान्त भवन ग्रन्थागार में सुरक्षित तथा वि.सं. 1867 में लिखित- "श्री सम्मेदशिखर की यात्रा का समाचार" नामक हस्तलिखित ग्रन्थ पठनीय हैं ।
पासणाहचरिउ के अनुसार अंग- देश नल साहू की एक व्यापारिक गद्दी थी। इसकी राजधानी चम्पा नगरी थी । पार्श्व के जन्म समय तथा यवनराज के साथ युद्ध-प्रसंग में अंग- नरेश की चर्चा आई है। जैन साहित्य में इस देश का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है क्योंकि तीर्थंकर शलाका एवं शलाकेतर महापुरुषों से उसका घना सम्बन्ध रहा है। 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य की तो वह मोक्षस्थली ही है।
अंग देश वर्तमान भागलपुर से मुंगेर तक विस्तृत था । वायुपुराण के एक आख्यान के अनुसार अनुवंश के राजा बलि के पाँच पुत्र थे— अंग, बंग, कलिंग, सुम्ह एवं पुण्ड्र । इन्हीं पाँच वालेय राजकुमारों ने पूर्व और पूर्व - दक्षिण दिशा के पाँच जनपदों में राज्य स्थापित किये थे, जो उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हो गये ।
जनरल कनिंघम ने भागलपुर से 24 मील दूर पत्थरघाटा पहाड़ी के पास अंगदेश की राजधानी चम्पापुरी का उल्लेख किया है। संस्कृत-काव्यों में मगध की राजधानी गिरिव्रज (राजगृही) से पूर्व और मथुरा से दक्षिण-पूर्व के भू-भाग को अंग जनपद माना गया है।
पासणाहचरिउ :: 273