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काशी-वाणारसी-1/12, 1/15
काशी जनपद की राजधानी वाणारसी, तीर्थंकर पार्श्व की जन्म-स्थली थी। भारत के प्राचीन जनपदों में काशी-जनपद का महत्त्वपूर्ण स्थान था। इतिहासकारों के अनुसार यह जनपद वाणारसी से प्रयाग के पूर्वी-भाग तक विस्तृत था। (प्राचीन भारत-मेहता) वरुणा नदी एवं असी नामक नदियों का संगम होने के कारण वाणारसी नाम प्रसिद्ध हुआ। महाभारत में अनेक स्थलों पर इसकी कीर्ति का गान किया गया है।
पट्टण-1/12/16,3/2/3
हस्तिनापुर-8/11
पासणाहचरिउ में पट्टण का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया गया है। तिलोयपण्णत्ती के अनुसार ‘पट्टण' उसे कहा जाता था, जहाँ उत्तम रत्नों की खदानें होती थीं। यथावर रयणाणं जोणी पट्टण णामं विणिदिदडं। -(तिलोयपण्णत्ती 4/1399) बृहत्कल्पसूत्र (2/1090) के अनुसार नदियों एवं समुद्रों के किनारे स्थित बन्दरगाहों को, जहाँ से कि नावों और जहाजों द्वारा वैदेशिक व्यापार किया जाता था, वह पट्टन या जलपत्तन कहलाता था। यहाँ पर प्रधान रूप से वणिकजन निवास करते हैं। पासणाहचरिउ के अनुसार हस्तिनापुर का राजा स्वयम्भू था, जिसने पार्श्व के समवशरण में निर्ग्रन्थ-दीक्षा ली और कठोर तपश्चर्या की। बाद में वही पार्श्व प्रभु का प्रथम गणधर बना। आचार्य जिनसेन (आदि. 43/76, 8/223) के अनुसार हस्तिनापुर की स्थापना हस्तिन् नामक राजा ने की। वर्तमान में यह गंगा के दक्षिणी तट पर मेरठ से लगभग 30 कि.मी. दूर उत्तर-पश्चिमी कोण और दिल्ली से लगभग 80 कि. मी. दूर दक्षिण-पूर्व खण्डहरों के रूप में उपलब्ध है। कभी इस नगरी को विपुल सौभाग्य एवं श्री-सम्पन्नता उपलब्ध थी। कुरुक्षेत्र की राजधानी बनने का भी इसे सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आचार्य जिनसेन के अनुसार यहाँ तीर्थंकर मल्लिनाथ का समवशरण आया था तथा मुनि विष्णुकुमार ने राजा बलि के द्वारा हवन के लिये एकत्रित 700 मुनियों की प्राण रक्षा यहीं पर की थी। महाभारत (आदिपर्व 100/12) के अनुसार यह कौरवों की राजधानी थी। कव्वड (कर्वट) खेड (खेड़ा), मडंब, आराम, दोणामुह (द्रोणमुख), संवाहन, ग्राम, पट्टन, पुर एवं नगर ये भोगौलिक इकाइयाँ हैं। कुछ प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी एवं हिन्दी कवियों ने देश-वर्णन के प्रसंग में प्रायः इनके भी उल्लेख किए हैं। उपलब्ध विविध परिभाषाओं के आधार पर उन्हें निम्न प्रकार से समझा जा सकता हैजिनसेन कृत आदिपुराण में इसे खर्वट कहा गया है (16/175)। उसके अनुसार इसे पार्वत्य-प्रदेश से वेष्टित माना गया है तथा उसे अनेक गाँवों का व्यापारिक केन्द्र (मण्डी) भी कहा गया है। कौटिल्य ने खर्वट को दो ग्रामों के
कव्वड-खेड-मडंबारामइँ, दोणामुह-संवाहण-गामइँ, पट्टण-पुर-णयराइँ-7/1/17
कव्वड (कर्वट)-7/1/17
274 :: पासणाहचरिउ