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सयंभू (स्वयम्भू)-4/11/4
रज्जु - 9/1/4
लोयायास (लोकाकाश)-9/1
पार्श्व के लिये प्रदत्त ज्ञान-विज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि सम्बन्धी लौकिक शिक्षाएँ - 2/17/1-20 जंबूदीव (जम्बूद्वीप)- 12/5/8
272 :: पासणाहचरिउ
की देवियाँ, (5) व्यन्तर देवों की देवियाँ, (6) भवनवासी देवों की देवियाँ, (7) भवनवासी देव, (8) व्यन्तर जाति के देव (9) ज्योतिष्क जाति के देव, (10) सौधर्म स्वर्ग से अच्युत स्वर्ग तक के इन्द्र एवं देव, (11) चक्रवर्ती, माण्डलिक राजा तथा अन्य मनुष्य एवं ( 12 ) तिर्यंच जीव ।
बुध श्रीधर के अनुसार तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रथम गणधर । तिलोयपण्णत्ती, उत्तरपुराण एवं पासणाहचरिउ (पउमकित्ति ) में भी स्वयम्भू को पार्श्वनाथ का प्रथम गणधर कहा गया है । किन्तु यह नाम सर्वसम्मत नहीं है। कुछ आचार्य लेखकों ने प्रथम गणधर के रूप में अन्य दूसरों के नामों के उल्लेख किये हैं । - तिलोयपण्णत्ती के अनुसार जग श्रेणी के सातवें भाग प्रमाण को रज्जु अथवा राजू का प्रमाण कहा गया है । यथा— जग सेढिए सत्तमभागो रज्जू पभासते । (1/32)
आकाश द्रव्य के जितने प्रदेश में धर्मद्रव्य तथा अधर्मद्रव्य के माध्यम से होने वाली जीवों एवं पुद्गलों की गति एवं स्थिति हो, उसे लोकाकाश कहा गया है। बाकी के आकाश को अलोकाकाश कहा गया है। उक्त लोकाकाश का क्षेत्रफल 343 राजू प्रमाण बतलाया गया है। विशेष जानकारी के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ की नवमी - सन्धि देखिये ।
इनके रोचक वर्णन के लिए 2/17 कडवक तथा इस ग्रन्थ की प्रस्तावना (पृष्ठ 65 ) देखिये ।
जैन - भूगोल के अनुसार मध्यलोक में असंख्यात द्वीप- समुद्रों के बीच एक लाख योजन के व्यास वाला बलयाकार जम्बूद्वीप है। इसके चारों ओर लवण - समुद्र तथा मध्य में सुमेरु पर्वत है । इसी द्वीप की पूर्व एवं पश्चिम दिशा में लम्बायमान दोनों ओर पूर्व एवं पश्चिम समुद्र को स्पर्श करते हुए हिमवन, महाहिमवन, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी नामक छह कुलाचल हैं।
उक्त कुलाचलों के कारण उसके 7 क्षेत्र बन जाते हैं। दक्षिण दिशा के प्रथम भाग का नाम भरतक्षेत्र, द्वितीय भाग का नाम हैमवत, तृतीय भाग का नाम हरिक्षेत्र है। इसी प्रकार उत्तर दिशा के प्रथम भाग का नाम ऐरावत, द्वितीय भाग का नाम हैरण्यवत् एवं तृतीय भाग का नाम रम्यक् क्षेत्र है ।
मध्य भाग का नाम विदेह-क्षेत्र है । इनमें से भरत क्षेत्र की चौड़ाई 526– 6/19 योजन है अर्थात् जम्बूद्वीप की चौडाई के एक लाख योजन के 190 भागों में से एक भाग प्रमाण I
उक्त सातों क्षेत्रों में से भरत क्षेत्र में गंगा-सिन्धु, हैमवत् में रोहित-रोहितास्या, हरिवर्ष में हरि-हरिकान्ता, विदेह-क्षेत्र में सीता - सीतोदा, रम्यक् क्षेत्र में नारी - नरकान्ता, हैरण्यवत् क्षेत्र में स्वर्णकूला- रूप्यकूला एवं ऐरावत क्षेत्र में रक्तारक्तोदाये 14 नदियाँ बहती हैं।