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उसी उत्तम बुद्धि वाले साहू नट्टल ने अपने मन में विवेक पूर्वक विचार करके संसार की समस्त भौतिक उपलब्धियों को असार तथा स्वप्नोपम मानकर समस्त पापों को नष्ट करने वाले तथा मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करने वाले इस पार्श्वनाथ-चरित के लिखने की मुझे (महाकवि बुध श्रीधर के लिये) प्रेरणा दी और मैंने भी उसे अत्यन्त प्रमुदित-चित्त होकर लिखा।। 51।
पंचाणुव्वयधरणु स सयल सुअणहँ सुहकारणु। जिणमयपह-संचारणु विसमविसयासावारणु।। मूढ-भाव-परिहरणु मोह-महिहर-णिद्दारणु। पाववल्लि-णिद्दलणु असमसल्लइ ओसारणु।। वच्छल्ल-पहावण वित्थरणु जिणमुणिपयपुज्जाकरणु।।
अहिणंदउ णट्टल साहु चिरु बिबुहयणहँ मण-धण-हरणु ।। 6 ।। जो पाँच अणुव्रतों का पालक है, सभी स्वजनों के लिये सुख का कारण है, जिनमत के पथ में संचरण करने वाला है, विषम विषय-कामनाओं का वारण करने वाला है, मूढ (या मूढ़ता)- भावों का परिहारक है, मोह रूपी महापर्वत का विदीर्ण करने वाला है, पापरूपी लता का निर्दलन करने वाला है, सभी प्रकार की शल्यों को दूर करने वाला है और जो वात्सल्य एवं प्रभावना-अंगों का विस्तारक तथा जिन-मुनियों के चरणों की पूजा करने वाला है, विबुध-जनों के मन रूपी धन का हरण करने वाला वह नट्टल साहू चिरकाल तक अभिनन्दित रहे ।। 6 ।।
दाणवंतु त किं दंति धरिय-तिरयण त कि सेणिउ। रूपवंतु त किं मयणु तिजय-तावणु रइ माणिउ।। अइ-गहीरु त कि जलहि गरुय लहरिहिँ हय सुरवहु । अइथिरयरु त कि मेरु वप्पचयरहियउ त किं णहु।। णउ दंति ण सेणिउ णउ मयण ण जलहि मेरु ण पुणु ण णहु ।।
सिरिवंत साह जेजा-तणउ जगि णडल सपसिद्ध इह ।। 7।। - यह नट्टल साहू दानवन्त है, तो क्या वह दन्ती-हाथी है? - त्रिरत्न युक्त है, तो क्या यह नट्टल, राजा श्रेणिक है?
वह नट्टल अप्रतिम रूपवान् है मानों त्रिजगत् को तपाने वाला है, तो क्या वह रतिपति-कामदेव ही है? वह नट्टल अत्यन्त गम्भीर है, तो क्या वह भयानक लहरों वाला तथा सुर-वधुओं को भयभीत कर देने वाला जलधि–महासमुद्र है?
वह नट्टल स्थिरतर है, तो क्या वह सुमेरु पर्वत है? - बाप रे बाप, वह नट्टल प्रचय (स्थूलता)-रहित है, तो क्या वह नभ है?
नहीं-नहीं। अरे भाई, (ऐसा क्यों पूछ (-कह) रहे हो?) न तो वह नट्टल हाथी है, न राजा श्रेणिक, न तो वह मदन है, न भयानक तरंगों वाला जलधि, न मेरु, और न नभ ही। अरे, वह तो श्रीमन्त साहू जेजा का जगप्रसिद्ध पुत्र नट्टल साहू है।।7।।
अंग-बंग-कलिंग-गउड-केरल-कण्णाडहँ। चोड-दविड-पंचाल-सिंधु-खस-मालव-लाडहँ।। जट्ट-भोट्ट-णेवाल-टक्क-कुंकण-मरहट्ठहँ।
पासणाहचरिउ :: 263