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12/3 The elephant observes its vows very strictly for continuous four years. एत्तहे करिवरु
पणविय मुणिवरु।। महइ ण सरवरु
दलइ ण तरुवरु।। अणुवय पालइ
करिणि ण लालइ।। जीव ण रोसइ
अणुदिणु सोसइ।। उववासहिँ तणु
खंचेइणियमणु।। विसये हिंतउ
पाउ करतउ।। मयगल सत्थें
चूरिय पंथें।। चलइ गयाहिउ
जूह-पसाहिउ।। पर-डोहिय-जलु
पिवइ गलियमलु ।। मणि सुमरइ जिणु
तोडिय भवरिणु।। गसइ गयालसु
णिम्मल-माणसु।। मंदउ विहरइ
परहो ण पहरइ।। एण पयार
णिज्जिय मार।। तरु पल्लव घणि
खयराउल वणि।। तहो अच्छंतहो
मणि इच्छंतहो।। जिणवर सासणु
पाव-पणासणु।। घत्ता- वय-विहि पालंतहो तमु गालंतहो उप्पाइय मणि हरिसइँ।
मुणि-पय-झायंतहो धम्मु रयंतहो गय चयारि तहो वरिसइँ।। 212 ||
12/3 गजराज अशनिघोष लगातार चार वर्षों तक कठोर व्रताचरण करता रहता है(अरविन्द भट्टारक के सम्मेदगिरि की ओर विहार कर जाने के बाद-) वह करिवर अशनिघोष उन मुनीन्द्र को (परोक्ष रूप से) नमस्कार करते हुए, सरोवरों का मन्थन छोड़कर, तरुवरों का दलन करना छोड़कर तथा अणुव्रतों का पालन करते हुए हथिनियों से लाड-दुलार करने से दूर रहते हुए, जीवों पर रोष न करते हुए प्रतिदिन उपवास से अपने शरीर को कृश करने लगा।
पापास्रव करने वाले अपने मन को विषय-वासना से खींचता हुआ, गजयूथ से अलंकृत वह गजराज हाथियों द्वारा दलित मार्ग से चलता, दूसरों के द्वारा मथित निर्मल जल को पीता रहा और संसार के ऋण को तोड़ता हुआ मन में जिनेन्द्र का स्मरण करता हुआ, निर्मल चित्त वाला वह अशनिघोष लालसा रहित होकर भोजन करता हुआ, मन्द-मन्द विचरण करता हुआ, दूसरे किसी पर प्रहार भी नहीं करता था।
इस प्रकार काम-वासना को जीतता हुआ वह तरु-पल्लवों से सघन एवं पक्षियों से व्याप्त वन में पाप-प्रणाशक जिनवर के शासन की कामना करता हुआघत्ता- व्रत-विधि का पालन करता हुआ, पापरूपी अन्धकार को गलाता हुआ, अपने मन में हर्ष उत्पन्न करता हुआ,
मुनीन्द्र-चरणों का ध्यान करता हुआ, धर्म में रुचि रखता रहा और इसी प्रकार उसके चार वर्ष व्यतीत हो गये।। 212।।
पासणाहचरिउ :: 245