Book Title: Pasnah Chariu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 332
________________ 12/8 A huge python or serpent (Ajagara) swallows the saint. The python also dies in forest-conflagration (Dāvāgni). तहिँ मेरुसिहरग्गि जिणणाहु वंदेवि णाणा-पयारेहिँ थुत्तेहिँ णंदेवि।। थिउ काउसग्गेण ककुहंबरो जाम कमठो वि कढिण मणु संपत्तहो ताम।। विसहेवि दूसह महाणरय दुक्खाइँ पंच-पयाराइँ सयसहसलक्खाइँ।। अजयरु महाकाउ होऊण सो तेण मुणिणाहु संगिलिउ जोयण पमाणेण।। मुणिणा वि सुमरेवि मणि पंचपरमेट्ठि किउ कालु विमलयर-झाणेण कय-तुट्ठि।। उप्पण्णु सुरराउ अच्चुव विमाणम्मि पुव्वुत्त-पुण्णेण सुर-विहियमाणम्मि।। अजयरु वि दवजलण-जालावली दड्दु तम-णरइ संजाउ कमि णारओ संदु।। तहिँ कोवि करवत्त-धाराहिँ फाडेइ णिरु कोवि खर-विरस-वयणेहँ ताडेइ।। असिदंड धारा-णिवाएण दारेइ दिढ-मुट्ठिए पण्ही-पहारेहिँ मारेइ।। घत्ता— जंबूदुम-लंछणि दोमय-लंछणि दीवइ अवरविदेह। धण-कण-जण-पुण्णइँ णिहणिय-दुण्णइँ गंधिल विसइँ सुगेह.।। 217 || 12/8 दीर्घकाय अजगर मुनिराज को निगल जाता है। वह अजगर भी दावाग्नि में जलकर भस्म हो जाता है.... उस पुष्कराध के मेरु-शिखर के अग्रभाग में जिननाथ की वन्दना कर, नाना प्रकार के स्तोत्रों से अभिवन्दन कर वे दिगम्बर मुनि-रविवेग जब कायोत्सर्ग-मुद्रा में स्थित थे, तभी क्रूर मन वाला वह कमठ का जीव भी, जिसने कि पूर्वजन्म में महानरक के पाँच प्रकार के सैकड़ों हजारों-लाखों दुखों का सहा था और जो (कमठ) मरकर एक योजन प्रमाण महाकाय वाले अजगर के रूप में उत्पन्न हुआ था, वहाँ आया और उसने उन मुनिनाथ को निगल लिया। उन मुनिराज ने भी अन्त समय में अपने मन में पंच-परमेष्ठि का स्मरण कर विमलतर ध्यान किया और शान्तिसुखपूर्वक संन्यास मरणकर पूर्वकृत पुण्य के प्रभाव से सोलहवें अच्युत नामक स्वर्ग-विमान में देवों द्वारा सम्मानित सुरेन्द्र के रूप में उत्पन्न हुए। वह (कमठ का जीव-) अजगर भी दावाग्नि की ज्वाला से जलकर तम नामके छठवें नरक में क्रम से संढ (नपुंसक) नारकी हुआ। वहाँ उसे कोई नारकी तो करोत (आरे) की धारा से चीर-फाड़ कर देता था, तो कोई कर्कश नीरस वचनों से तर्जना करता रहता था, तो कोई नारकी उसे असि से विदारता, कोई डण्डे से मारता, तो कोई उसे दृढ़ मुट्ठी या जूतों-लातों से प्रहार कर मारता था। घत्ता- जम्बू-वृक्ष के लांछन वाले तथा दो मृग-लांछन (अर्थात् दो चन्द्रमा) वाले जम्बूद्वीप के पश्चिम-विदेह में धन धान्य एवं जनों से परिपूर्ण, अन्याय से रहित तथा सुन्दर-सुन्दर भवनों से युक्त गन्धिल (गान्धार?) नाम का एक देश है।। 217 || 250 :: पासणाहचरिउ

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