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Description of the fierce fighting. दुवइ- चूरिउ मुग्गरेण रहु केणवि चिंधु फाडिओ।
संधिवि णिसियवाण वाणासणे केणवि कोवि पाडिओ।। छ।।
तिक्ख कुंतेण केणावि विद्धा हया कोवि केणावि मुट्ठीहिँ पद्धारिओ कोवि केणावि कूरेण पच्चारिओ कोवि केणावि भल्लीहि णिद्दारिओ कोवि केणावि आवंतु आलाविओ कोवि केणावि रुद्धो विरुद्धो भडो कोवि केणावि धावंतु पेमाइओ कोवि केणावि दिट्ठो रुसा भीसणो कोवि केणावि सत्तीहिँ ससल्लिओ कोवि केणावि जुज्झंतु रेक्कारिओ
रत्तलित्ता विमत्ता गया णिग्गया।। कोवि केणावि पण्हीए लत्थारिओ।। कोवि केणावि मारेवि उल्लारिओ।। कोवि केणावि आयासे संचारिओ।। कुंजरारिव्व सिग्घं समुद्धाविओ।। कंधरं तोडि णच्चाविओ णं णडो।। तोमरेणोरु-वच्छत्थले घाइओ।। वाणजालं मुअंतो महाणणीसणो।। पेयरायाहिवासं तुरं घल्लिओ।। दारिऊणं खुरुप्पेण मारिओ।।
घत्ता- जं तुट्टउ रिणु सामिहि तणउ तं सकियत्थु अज्ज हउँ जायउ।
एउ मण्णेवि वि णावइ सुहडघडु कासु वि णच्चिउ रणि उद्घायउ।। 68 ।।
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तुमुल - युद्ध वर्णनद्विपदी—किसी वीर ने मुग्दर से शत्रु के रथ को चूर डाला, तो किसी ने किसी की ध्वजाओं को चिथड़ा बना दिया
और किसी सुभट ने धनुष पर तीक्ष्ण बाण चढ़ाकर उसे अपने शत्रु-वीर पर फेंक दिया। किसी सुभट ने तीक्ष्ण भाले से शत्रु के घोड़ों को वेध डाला, तो किसी के रक्त से लिप्त मत्त गज भाग निकले। किसी ने किसी को मुक्कों से पछाड़ दिया, तो किसी ने किसी को जूतों से लताड़ डाला।
किसी को किसी ने क्रूर अपशब्दों से ललकार दिया, तो किसी को किसी ने मारकर ऊपर उछाल दिया और किसी को किसी ने भल्ली (छुरी) से विदार डाला। किसी को किसी ने आकाश में उछाल दिया, तो किसी ने किसी आते हुए से आलाप किया और जिस प्रकार सिंह के सम्मुख गज नहीं ठहर सकता, उसी प्रकार उसे तत्काल ही हाँक दिया। किसी ने किसी प्रतिपक्षी भट को रोक लिया और उसकी गर्दन को तोड़-मरोड़ कर नट के समान नचा डाला।
किसी दौड़ते हुए शत्रु को किसी ने प्रेमपूर्वक पुचकारा और फिर तोमर नामक शस्त्र से उसके विशाल वक्षस्थल को घात डाला। किसी को किसी ने क्रोधावेश में भरते देखा और किसी ने बाणजाल छोड़ते हुए किसी को असमर्थ कर दिया। किसी ने किसी को शक्ति से शल्यित (घायल) कर दिया और उसे तुरन्त ही यमराज के घर भेज दिया। किसी को किसी ने जूझते हुए 'रे'कार शब्द से ललकारा और खुरपा से उसे विदीर्ण कर मार डाला। घत्ता- “आज मेरे द्वारा मेरे स्वामी का ऋण चुक गया और मैं कृतार्थ हो गया” ऐसे पदों (वचनों) को विनम्रतापूर्वक
कहते हुए किसी सुभट का धड़ रणभूमि में नाचने लगा और उछलने लगा। (68)
पासणाहचरिउ :: 77