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7/11 Even the postures and gestures of beauty queen angels
proved ineffective on meditating Pārswa.
वत्थु-छन्द- कावि गायइ सरस सुइ-महुरु।
कावि चलि णयणहिँ णियइ कावि थोर थणजुयलु दरिसइ। कावि हावभावइँ करइ कावि विलासविब्ममहिं हरिसइ।। कावि दक्खवइ मणि रसणु अद्भुमिल्लु करेवि। कावि मग्गइ णिय सिरु धुणेवि चुंबणु पुरउ सरेवि।। छ।।
कावि भणइ तुहँ णिद्दक्खिण्णउ देव ण देक्खहि किं मण भिण्णउ कावि पयंपइ किं पविलंबहि अहणिसु णियमणि किं णिज्झायहि कावि सुहासइ मम्मण वयणेहिँ को आएसु ण मइँ संगहियउ कावि हसंति पयंपइ सुंदरि एउ अउव्वु अडंबरु मेल्लिवि चप्पेवि थण-जुअलु सहारउ
महु तणुरुहु विरहाणल खिण्णउ।। पंचसरेण सरेहिँ सुछिण्णउ।। किण्ण महारइ गलिय बिलंबहि।। दयकरि मयणाणल उल्लावहि।। जिणु णियंति अणियालिहिँ णयणहिँ।। जेण मउणु पइँ सामिय विहियउ।। मरद्धय धरणीहर कंदरि।। बाहुदंड बेण्णिवि उब्वेल्लिवि।। किण्णालिंगहि कंठु महारउ।।
7/11 ध्यानस्थ पार्श्व मुनीन्द्र पर उन रूपस्विनी अप्सराओं के
भाव-विधमों का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ावस्तु छन्द- उन पार्श्व मुनीन्द्र के सम्मुख कोई अप्सरा तो श्रुति-मधुर गीत गा रही थी, तो कोई उन्हें अपने चपल
नेत्रों से निहार रही थी और कोई-कोई उन्हें अपने पृथुल स्तनयुगल दिखा रही थी, कोई उनके सम्मुख कामोत्तेजक हाव-भावों का प्रदर्शन कर रही थी, तो कोई अपने विलास-विभ्रमों से हर्षित करने का प्रयत्न कर रही थी, कोई-कोई अप्सरा अर्ध नेत्र निमीलित कर अपनी मणिजटित रसना (करधनी) दिखला रही थी, तो कोई-कोई अपना सिर धुनती हुई आगे पहुँचकर चुम्बन माँग रही थी।
कोई-कोई अप्सरा पार्श्व से कह रही थी कि तू अत्यन्त निरा अदाक्षिण्य (मूर्ख) है। मेरा तन तेरे विरहानल के कारण सन्तप्त है। रे देव, क्या देख नहीं रहा है कि कामदेव के वाणों ने मेरा मन छिन्न-भिन्न कर डाला है। कोई -कोई अप्सरा कह रही थी कि विलम्ब क्यों कर रहे हो, मेरे साथ सुखद रतिकर्म क्यों नहीं करते? अपने मन में तुम अहर्निश किसका ध्यान करते रहते हो ? अरे, कुछ तो दया करो, मुझे मदनाग्नि से क्यों नहीं बचाते? कोई कोई कटाक्ष भरे तिरछे नेत्रों से जिनेन्द्र को ताक रही थी, मानों कह रही हों कि हे देव, मैंने तुम्हारा कौन सा आदेश नहीं माना है, जिसके कारण तुमने मौन धारण कर लिया है ? ___ कोई-कोई अप्सरा इस प्रकार हँस रही थी, मानों मकरध्वज रूपी राजा के रहने के लिये वह स्वयं पर्वत रूपी कोई कन्दरा ही हो। वह कहे जा रही थी कि अब इस अपूर्व आडम्बर को छोड़कर अपने दोनों बाहुदण्डों को
पासणाहचरिउ :: 147