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Fully disappointed and disgruntled the demon King again creates hindrances through dark heavy clouds invited for the mean purpose.
वत्थु - छन्द - स मणि चिंतइ ससिरु विहुणंतु ।
वस्तु छन्द
किं मज्झ देवत्तणेण किं विभूइ-भूसिय विमाणेण । किं चारु अच्छरगणेण किं सुहेण णिहय माणेण । । किं बहुविह विज्जा - विहिया रूवहिँ रिउ चंडेहिँ । । किं कंकण-केऊर रुइ सवलिय भुअ- दंडेहिँ । । छ । ।
जेहि ण वियारिउ वइरिउ दूसह किउ उवसग्गु रिउ हो तो वि ण वइरिउ रोमु विकंपिउ एव्वहिँ किं करेमि बल - हीणउँ कहिं गच्छमि परिगलिय मणोरहु एम जाम मणि णिज्झायइ अविरल धारहिँ पाडमि पाणिउँ ताम जाम वइरिउ रेलिज्जइ
विरइय मह-अहिमाण परीसहु ।। तव तेओहामिय रवितेयहो । । जइवि फरूस खर वयणहिँ जंपिउ ।। बहु उवसग्गु करंतउ खीणउँ ।। एहु कज्जु महु जायउ भारहु ।। ता उवसग्गु चित्ते तहो जाय ।। करि मयरोहरहारहिँ माणिउँ ।। धरणि महाविविरंतरि णिज्जइ । ।
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निराश एवं उदास वह कमठासुर घने मेघों को आमन्त्रित कर उनके माध्यम से पार्ख पर उपसर्ग करता है
तब वह कमठासुर अपना सिर घुनता हुआ चिन्ता करने लगा कि मेरे इस देवत्व से क्या लाभ? विभूति-विभूषित विमान (के स्वामित्व) से क्या लाभ? सुन्दर अप्सराओं के साथ रहने से क्या लाभ? मानहीन सुख भोगों से क्या लाभ? बहुविध (मायाविनी) विद्याओं से क्या लाभ? (निरर्थक हो जाने वाले) अपने अनेक प्रकार के मायावी एवं प्रचण्ड रूपों को भी शत्रु को दिखाते रहने से क्या लाभ? कंकण एवं केयूर (भुजबन्द) की द्युति से शबलित इन भुजदण्डों के रहने से भी क्या लाभ?
154 :: पासणाहचरिउ
जिनसे परीषहजयी इस दुस्सह बैरी को विदारित नहीं किया जा सकता। मैंने महान् अभिमान पूर्वक अपने तेज से रवि के तेज को भी मन्द करने वाले इस (पार्श्व) पर लगातार कठोर उपसर्ग किये थे, तो भी इस बैरी का एक रोम भी विकम्पित नहीं हो सका । यद्यपि ( उपसर्ग - काल में) उसके लिये भयावह कर्कश - कठोर वचन भी बोले गये । अतः अनेक उपसर्गों के करते-करते क्षीण तथा बलहीन हो जाने के बाद अब मैं क्या करुँ परिगलित मनोरथ वाला मैं अब कहाँ जाऊँ ? क्योंकि अब तो यह कार्य मेरे लिये अति भार-स्वरूप हो गया है।
इस प्रकार जब वह असुर अपने मन में चिन्ता कर रहा था, तभी उसके मन में एक अन्य उपसर्ग करने का विचार उठा। उसने निश्चय किया कि मैं हाथी, मगर, घडियाल आदि से युक्त पानी की तेज अविरल धारा तब तक बहाऊँ, जब तक कि हमारा बैरी (पार्श्व) उसके रेले में न आ जाय और तब तक वह उसे बहाकर धरती के बड़े-बड़े विवरों में न ले जाय ।