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11/7 An account of kingdom's priest (Rāja-Purohita) Viswabhūti and his family.
तहो घरिणि अणुंधरि धरिय सील तहो भुजंतहँ रइ-सोक्खु णिच्चु उप्पण्ण बेण्णि तणुरुह गुणाल पमणिउ पहिलउ कमठाहिहाणु पहिलउ परिणाविउ वरुणकंत बिण्णवि लीलएँ अच्छंति जाम लक्खिवि भंगुरु संसार-सुक्खु इय जाणिवि मिल्लवि गेहवास संगहिय जिणिंदहो तणिय दिक्ख तहो विरह भरिय-घरु-परिहरेवि
पिय वयणे जिय कलयंठि-लील।। वर हाव-भाव विब्मम-णिमिच्चु ।। आराहिय सिरिहर पय-मुणाल।। बीयउ मरुभूइ सिरि-णिहाणु।। बीयउ वि वसुधरि सोमकंत।। जणणहो जाइउ बइराउ तेम।। णिरुवमु सुहयर केवलउ मुक्खु ।। पसरूअहं भूअहं कंठपासु।। तक्खणे ओलक्खिय सयल-सिक्ख।। थिय झत्ति अणुंधरि दिक्ख लेवि।।
घत्ता- इत्थंतरे राएँ पयणिय राएँ णिसुअवत्त जण-वयणहो।
जिह गयउ पुरोहिउ उवसम-सोहिउ जिण-पवज्जहिँ णयरहो।। 191 ।।
11/7 राज-पुरोहित-विश्वभूति एवं उसके परिवार का वर्णन___ उस विश्वभूति पुरोहित की गृहिणी का नाम अनुन्धरी था। वह बड़ी ही शीलवती थी। वह अपनी प्रिय मधुर वाणी से कलकण्ठी (कोयल) की लीलाओं को भी जीतने वाली थी। नित्य ही उत्तम हाव-भाव विभ्रम-विलासों से भरपूर रति-सुख को भोगते हुए उन दोनों के दो गुणवान् पुत्र उत्पन्न हुए, जो श्रीधर (विष्णु) के चरण-कमलों के आराधक थे। ___ प्रथम पुत्र कमठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा श्रीनिधान द्वितीय पुत्र मरुभूति के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्रथम पुत्र कमठ वरुणकान्ता के साथ व्याहा गया, जबकि दूसरा पुत्र मरुभूति, सौम्यकान्ति वाली वसुन्धरी के साथ व्याहा गया।
जब वे दोनों पुत्र लीलाओं पूर्वक अपना जीवन-यापन कर रहे थे, तभी उनके पिता विश्वभूति को वैराग्य हो गया। उसने संसार-सूख को क्षण-भंगर देखकर केवलज्ञान एवं मोक्ष को निरुपम सुखकारक जानकर, गहावास त्याग कर दिया और पशु समान भूतों (भौतिक सुखों) को कण्ठ-पाश समझकर जिनेन्द्र-दीक्षा ग्रहण कर ली।
उसने तत्काल ही समस्त आगमिक शिक्षाएँ प्राप्त कर ली। पति के विरह से दुख भरी उसकी पत्नी अनुन्धरी भी तत्काल ही गृहत्याग कर जिन-दीक्षा में स्थित हो गईं।
घत्ता- इसी बीच अनुरागी उस राजा अरविन्द ने जनपदवासियों द्वारा जब यह वार्ता सुनी कि— पुरोहित
विश्वभूति उपशम (वैराग्य) भावों से शुद्ध होकर जिन-प्रव्रज्या के लिये नगर से चला गया है-।। 191 ।।
पासणाहचरिउ :: 223