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After his death, Kamatha takes new birth as a terrific Kukkuta-sarpa (a kind of very poisonous snake)
तो इत्थंतरे
कु
प
इच्छिय परिहरु दूसह दप्पो
जय पुराहि
पय परिपाल
ता इक्कहि दिणि दिक्खवि मणहरु विणु कागणि
जा असमाणउ
लिहइ सह
ताम पणट्ठउ
तारसु पिक्खिवि
चिंतइ णरवरु तिह जाएसम
हउँमि णिरुत्तउ सइँ णिय परियणु मज्झु सरीरउ
अहिसिंचेवि
दुक्ख णिरंतरे ।। जणि विक्खायउ ।। उ विरप्पिणु ।। आसीविसहरु ।।
कुक्कड सप्पो ।।
हय पडिराहिउ ।।
उहालाइ ||
सइ उग्गइ दिणि ।।
सारय जलहरु ।।
जुइ णिज्जिय मणि ।। तो अणुमा पण सत् । ।
।।
मेह ण दिट्ठउ ।।
मणि उवलक्खिवि ।।
जिह गउ जलहरु ।।
उ थामि ।। तक्खणि वृत्तउ ।। सेवारय मणु ।।
गिरिवर धीरउ |
जिणु अंचे विणु ।।
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म मरकर विषैले कुक्कुट-सर्प की योनि प्राप्त करता है
तब इसी बीच (परस्त्री लम्पट के रूप में) लोगों में विख्यात वह कमठ बाल-तप करके मरा और दुखों से परिपूर्ण सर्प-कुल में दुःसह दर्प वाला कुक्कुट सर्प नाम का आशी- विषधर हुआ ।
और इधर, पुरवासियों का हित करने वाला तथा शत्रुओं का संहार करने वाला वह राजा अरविन्द प्रजा-पालन में तत्पर था, तथा न्याय-पूर्वक उसकी देखभाल कर रहा था। तभी एक दिन सूर्य के उदय होते समय उसने शरद्कालीन मनोहारी मेघ को स्वयं देखा और अपनी द्युति से मणि को भी जीत लेने वाली कागणी (तूलिका) लेकर जब कला-प्रवीण वह उसके उस असाधारण सौन्दर्य रूप को अपने अनुमान से अपने हाथों द्वारा रेखांकित करने बैठा, तभी वह मेघ नष्ट हो गया। वह उसे दिखाई नहीं दिया।
उसे देखकर अपने मन में उपलक्षित कर वह नरवर चिन्तन करने लगा कि जिस प्रकार वह जलधर देखते-देखते
अदृश्य हो गया है, वैसे ही मैं भी इस संसार से चला जाऊँगा, यहाँ स्थिर होकर नहीं रह सकूँगा । अतः उसने तत्काल ही अपनी सेवा में रत परिजनों को बुलाकर कहा कि मुझे वैराग्य हो रहा है। अतः तुम लोग पर्वत के समान धीर-वीर मेरे पुत्र का जिनेन्द्र की पूजा कर राज्याभिषेक करके उसे—
230 :: पासणाहचरिउ