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Characteristics of donars. विणयाहरणालंकिउ दयालु
विहुणिय मिच्छत्त पउर पयालु ।। धीरउ दूरुज्झिय रायदोसु
भवियण माणस संजणिय तोसु।। भासिउ वयणहिँ मह मुणिवराहँ रइँ विरयइँ सासणि जिणवराहँ।। धम्मिउ सम-माणसु महुर-वाणि सम्मत्त-विहूसिउ भव्वपाणि।। णिरहंकारउ दायारु होइ
णिज्जिय-कसाउ वज्जरइ जोइ।। जो पीडिवि ताडिवि करेवि कोउ दूसेवि णिब्मच्छेवि करेवि सोउ।। पुणु देइ दाणु जिणवरेहिँ सिद्गु सो होइ ण दायारउ विसिद्गु ।। भय भरियउ कंपइ देहु जेण
गुणवंतु पत्तु णासियइ जेण।। संपज्जइ बहु आरंभु जेण
हम्मति णिरंतर जीव जेण।। सग्गापवग्गु कामंतएहिँ
इय दाणु ण दिज्जइ संतएहि।।
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घत्ता- महि मंदिर लोह. विहिय विरोह. गो-महिसी-तिल-हेमइँ।
इय दाणु ण दिज्जहिँ वप्प ण लिज्जहिँ उवरोहेण ण केम.।। 203||
11/19 दातारों के लक्षण
जो विनय रूपी आभरण से अलंकृत हो, दयालु हो, मिथ्यात्व का नाशक हो, प्रचुरता के साथ मुनियों की पदसेवा करता हो. धीर हो, दर से राग-द्वेष छोड देने वाला हो. भव्य जनों के मानस में सन्तोष उत्पन्न करने अपनी वाणी से मुनिवरों की प्रशंसा करने वाला हो, जिनवरों के शासन के प्रति अनुरागी हो, धर्मात्मा हो, समचित्त हो, मधुर-भाषी हो, सम्यग्दर्शन से विभूषित हो, भव्यप्राणी हो, निरहंकारी हो, उसे कषाय-विजयी योगीजनों ने दातार कहा है।
(इनके विपरीत-) जो पीड़ा देता हो, जो ताडन करता हो, क्रोध करता हो, जो दूसरों को दोष लगाता हो, जो दूसरों को भर्त्सना करता रहता हो, और जो शोकाकुल रहकर दान देता हो, वह विशिष्ट अथवा अच्छे दातार की कोटि में नहीं आता, ऐसा जिनवरों ने कहा है।
जिससे भयभीत होकर देह काँपने लगे, जिससे गुणवान् पात्र का नाश हो, जिससे अनेक प्रकार के आरम्भ करना पडें, जिससे जीवों का निरन्तर घात हो, स्वर्गापवर्ग की कामना करने वाले सन्त दातारों द्वारा ऐसा दान न दिया जाय।
घत्ता– महीदान, भवनदान एवं लौहदान ये दान विरोध-भाव उत्पन्न करने वाले हैं। गोदान, महिषीदान, तिलदान,
एवं स्वर्णदान बाप रे बाप, इन दानों को न तो देना चाहिए और किसी के द्वारा अनुरोध किये जाने पर भी किसी से न लेना ही चाहिए।। 203 ।।
पासणाहचरिउ :: 235