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Colophon
इय पास-चरितं रइयं बुह सिरिहरेण गुण-भरियं। अणमण्णिय मणोज्जं णट्टल णामेण भव्वेण।। छ।।
दायार-दाण-विहि पत्त फल सुसंबद्ध धम्म-कह-बंधो। चिर-जम्म-समीरणए एयारहमो संधी परिच्छेओ सम्मत्तो।। संधि 11|| छ।।
Blessings to Nattala Sāhu, the inspirer and guardian नित्यं यः शरदभ्र-शुभ्र-यशसां स्थानं विवेक-स्फुरद, रत्नानां निधिरुज्ज्वलोत्तम-धिया धामश्रियामाश्रयः । सौभाग्यस्य गृह शुभस्य सदनं धैर्यस्य सन्मन्दिरम, स श्रीमानिह साधु नट्टल इति क्षोणीतले जीवितात्।।
पुष्पिका इस प्रकार गुणभरित, मनोज्ञ एवं नट्टल साहू द्वारा अनुमोदित इस पार्श्वचरित की रचना बुध श्रीधर ने की है।। छ।।
इसप्रकार दातार, दान, दान-विधि, पात्र-प्रकार, दान-फल से सुसम्बद्ध धर्मकथा का बन्ध, तथा पूर्वजन्म के स्मरण का वर्णन करने वाला ग्यारहवाँ सन्धि-परिच्छेद समाप्त हुआ। (सन्धि 11)
आश्रयदाता नट्टल साहू के लिये आशीर्वाद . जो शरदभ्र के समान नित्य ही धवल-यश वाला है, जो स्फुरायमान विवेक का निवास-स्थल है, श्रेण्य विद्वानों के लिए जो उत्तम रत्नों की निधि के समान है, जो लक्ष्मी के आश्रय-स्थल के समान है, जो सौभाग्य का गृह है, कल्याणकों के लिए जो शुभ्र-भवन स्वरूप है, जो धैर्य का सुन्दर मन्दिर है, ऐसा साधु-चरित वाला नट्टल साहू इस पृथिवी-मण्डल पर सदैव जीवित बना रहे।
242 : पासणाहचरिउ