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The importance of the charity of religious books (Śāstradāna) including imparting moralteachings and kinds of donees and their chief characteristics—
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(1) Good donees or Uttama Patras. (are called as Ascetics)
(2) Layman with vows (are called as Madhyama Pātras )
(3) Laymen with right belief but not with vows (are called as Jaghanya Pātras) These three with right belief are called supātras or right donees (Supātras)
जणियइ विवेउ हिणियइ मोहु रक्खज्ज संजमु विहयपाउ तं सत्थु लिहावेवि मुणिवराहँ इम चउ-पयारु भासियउ दाणु पत्तु विति वज्जरइ जोइ उत्तमु हवेइ उत्तमगुणेहिँ
संभव जण गुणहिँ जहण्णु मज्झिमु विरयाविरयउ जहण्णु जो विरयइ मूलुत्तरगुणाइँ जो कोह-लोह-मय-माण चत्तु
ड- धम्मु वज्जियइ दोहु ।। वारियइ जेण संजाउ राउ ।। विएँ दिज्जइ जिय रइ-सराहँ ।। एव्व पुणु पत्त कुपत्त जाणु ।। उत्ति मज्झिमु णिक्किनु होइ ।। मज्झिमु जायइ मज्झिमु गुणेहिँ । । उत्ति तह मज्झिमुणिंदु णण्णु ।। सद्दंसण धार धरणि धण्णु ।। जो आनंद भवियण-मणाइँ । । जो वीयराय जिण-पाय- भत्तु ।।
घत्ता- जो तवसिरि-मंडिउ गुण-अवरुंडिउ मणसिएण ण हणिज्जइ ।
जो ति रयण-सहियउ वत्थ - विरहियउ उत्तमु पत्तु भणिज्जइ । | 206 | |
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शास्त्रदान का महत्त्व एवं उत्तम पात्रादि भेद-वर्ण
जिनागम शास्त्रों का पठन-पाठन कर जीवन में विवेक को उत्पन्न करना चाहिए, मोहभाव को नष्ट करना चाहिए, धर्मभाव को प्रकट करना चाहिए, द्रोह छोड़ना चाहिए, पापों का त्याग कर संयम की रक्षा करना चाहिए, जिनसे राग उत्पन्न होता हो, ऐसे साधनों का त्याग करना चाहिए और शास्त्रों को लिखवाकर काम पर विजय प्राप्त करने वाले मुनिवरों को अत्यन्त विनय पूर्वक दान करना चाहिए। इस प्रकार चार प्रकार के दानों का कथन किया। अब आगे पात्रकुपात्र का भी भेद जानना चाहिए
योगियों ने पात्रों के तीन भेद बताए हैं— उत्तम, मध्यम एवं निकृष्ट अथवा जघन्य ।
उत्तम गुणों से उत्तम कोटि का पात्र होता है, मध्यम गुणों से मध्यमकोटि का एवं निकृष्ट अथवा जघन्य गुणों से जघन्य कोटि का पात्र होता है।
इन पात्रों में से मुनीन्द्र उत्तम पात्र होते हैं, अन्य नहीं । विरताविरत (प्रतिमाधारी) श्रावक मध्यमपात्र होते हैं और सम्यग्दर्शन का धारी जघन्य पात्र होता है। ये ही पात्र इस धरणी में धन्य हैं।
जो मूल-गुणों तथा उत्तर- गुणों का पालन करते हैं, अपने उपदेशों से भव्यजीवों के मन को आनन्दित करते हैं, जो क्रोध, लोभ, मद एवं मान का त्याग करते हैं, जो वीतरागी जिनेन्द्रप्रभु के चरणों के भक्त हैं
घत्ता — जो तपश्री से मण्डित हैं, गुणों से परिपूर्ण हैं, जो काम से पीड़ित नहीं हैं, जो रत्नत्रय नग्न हैं, उन्हें ही उत्तम कोटि का पात्र कहा जाता है।। 206 ।।
238 :: पासणाहचरिउ
से
'युक्त हैं, वस्त्ररहित