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King Aravinda renounced the world, accepts asceticism and does severe penance in Sallaki-Forest.
इय णीसेसहोणिय परियणासु भासिवि णियपुत्तहो विउल-भालि पुच्छे विणु परियणु णिरवसेसु णंदणवणे पियवयणइँ चवेवि पडिगाहिवि दइगंबरिय दिक्ख विसहंतउ भीम - परीसहाइँ पालंतर पंचमहव्वयाइँ संचंतउ सिसियर तिरियणाइँ पालंतु सील बोहंतु भव्व दुद्दम पंचिंदिय णिज्जिणंतु विरयंतउ छावासय विहाणु विहरंतु पत्तु सल्लइ वणंति
णिय णाह-विओयाउल-मणासु ।। बंधेवि पट्टु मणिगण पहालि । । पुणु णिय णयरहो णिग्गउ णरेसु ।। पिहियासव मुणि चरणइँ णवेवि ।। ओलक्खिवि सयलागमहँ सिक्ख ।। णिरसंतउ मयण- सिलीमुहाइँ ।। लावंतउ भवियण सुव्वयाइँ । । भावंतउ बारह भावणाइँ । ।
जर- तिणुव नियंतउ सयल - दव्व ।। सावयहँ धम्मु दोविहु भणंतु ।।
अरविंदु भडारउ गुण - णिहाणु ।। खयरइँ सुहु तरुपंतिहि जणंति । ।
घत्ता —- तहिँ जा थिउ मुणिवरु झाइय जिणवरु तणु विसग्गु विरएप्पिणु । तित्थु जि आवासिउ जणहिँ समासिउ सत्थवाहि आवेष्पिणु ।। 200 ।।
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राजा अरविन्द मुनि दीक्षा लेकर सल्लकी-वन में कठोर तपस्या करने लगता है
तत्पश्चात् अपने स्वामी के वियोग से आकुल व्याकुल चित्त वाले अपने परिजनों को समझा-बुझाकर तथा अपने पुत्र के विशाल भाल पर मणियों की प्रभा से दीप्त पट्ट बाँधकर समस्त परिजनों से पूछकर वह राजा अरविन्द अपने नगर से निकला और नन्दनवन में प्रियवचन बोलकर पिहिताश्रव-मुनि के चरणों में प्रणाम कर उनसे दैगम्बरी-दीक्षा ले ली और समस्त आगम-शास्त्रों की शिक्षा ग्रहण कर ली ।
232 :: पासणाहचरिउ
तीक्ष्ण परीषहों को सहता हुआ, काम-वाणों का निरसन करता हुआ, पंच महाव्रतों का पालन करता हुआ, भव्यजनों को सुव्रतों में लगाता हुआ, चन्द्रकिरणों के समान रत्नत्रय का संचय करता हुआ, बारह भावनाओं को भाता हुआ, शीलव्रतों का पालन करता हुआ, भव्यजनों को प्रवोधित करता हुआ, समस्त द्रव्यादि सम्पत्तियों को जीर्ण-शीर्ण तृणवत् देखता हुआ, दुर्दम पंचेन्द्रियों को जीतता हुआ, श्रावकों के लिये दो प्रकार के धर्मों का प्रवचन करता हुआ, षडावश्यक क्रियाओं के विधान को करता हुआ गुणनिधान वह अरविन्द भट्टारक विहार करता हुआ वृक्षों की पंक्तियों से पक्षियों को सुख-संतोष देने वाले सल्लकी-वन में जा पहुँचा ।
घत्ता— जब वे अरविन्द भट्टारक जिनेन्द्र का ध्यान करते हुए कायोत्सर्ग धारण किये हुये तभी वहाँ अनेक लोगों के साथ एक सार्थवाह आया और उसने सदल बल वहीं पर पड़ाव डाल दिया ।। 200||