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Lucid discription of Prabhāwati, the chief queen (Paṭṭarānī) of King Aravinda.
तहो तणिय पहावइ पवर भज्ज सुह-सील पयासि परमणेह यि पइवय वर गुण - रयण-खाणि कलहंसिणीव बे पक्ख धवल रइरस जल वाहिणि णिहय-दाह सरसइ व सुहासिय सय- णिहाण करपल्लव जिय कंकिल्लिवत्त सरयमसिर व णिम्मल सरीर वर सीहिणीव मज्झम्मि खीण जण णयणहारि लावण्ण थत्ति
हिय-इच्छिय- णिच्छिय धम्म- कज्ज ।। आजम्मि लग्ग सोहग्ग-गेह || हिय-मिय- पिय-परहुअ महुर-वाणि ।। सारंगिव णयणावंग चवल ।। चिंतिय पर णं सुरसाहिसाह । । सिकंति व सुहयर सष्णिहाण ।। सुपसाएँ पीणिय सयलवत्त ।। कुलधरणीहर संत इव धीर ।। उद्दाम काम-कीलापवीण । । णं विहि दरिसिय विण्णाण सत्ति ।।
घत्ता— तहो अत्थि पुरोहिउ वरउवरोहिउ विस्सभूइ णामेण जि ।
जिधम्मासत्तर मुणिपय भत्तउ जणजणहो पिउ तेण जि ।। 190 ।।
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राजा अरविन्द की पट्टरानी प्रभावती का वर्णन
उस राजा अरविन्द की पट्टरानी का नाम प्रभावती था, जो हृदय से इच्छित धार्मिक कार्यों का निश्चय करने वाली, शुभशीला, परमस्नेह का प्रकाशन करने वाली तथा जन्म से ही सौभाग्य लक्ष्मी की निवास-स्थली थी। जो पतिव्रता थी और श्रेष्ठ गुण रूपी रत्नों की खानि थी । वह हित-मित एवं प्रिय तथा मधुर वाणी के लिये कोयल के समान थी। कलहंसिनी के समान उसके दोनों पक्ष (नैहर एवं ससुराल ) धवल (निष्कलंक एवं प्रतिष्ठित ) थे। उसके नयनांग कटाक्ष मृगी के समान चंचल थे। रति-रस रूपी विशाल नदी से कामदाह का शमन करने वाली थी, उत्तम चिन्तनशीला थी मानों स्वरस की अभिशाखा ही हो ( अर्थात् आत्मचिन्तन करने वाली थी) सरस्वती के समान वह सैकड़ों सुभाषितों की निधान थी । वह चन्द्रकान्ति के समान सुखों की पिटारी थी ।
222 :: पासणाहचरिउ
उसने अपने कर-पल्लवों से कंकेल्ली (अशोक) के पत्तों की शोभा को भी जीत लिया था, अपनी प्रफुल्लतारूपी प्रसाद से सभी के मुख को वह प्रभुदित करने वाली थी। शरद्कालीन मेघ के समान जिसका शरीर अत्यन्त निर्मल था, जो कुलाचलों एवं सन्तों के समान धीर गम्भीर थी, उत्तम सिंहनी की कटि के समान जिसका मध्य भाग अत्यन्त कृश था, जो उत्कृष्ट काम-क्रीड़ा में प्रवीण थी, जनता के नेत्रों को लुभाने वाले लावण्य की जो ऐसी थाती ( धरोहर ) थी मानों ब्रह्मा ने जिसके निर्माण में अपनी वैज्ञानिक शक्ति ही प्रदर्शित कर दी हो।
घत्ता— उस राजा का उत्तम सुशिक्षित विश्वभूति नाम का पुरोहित था, जो जिन-धर्मासक्त तथा मुनिपदों का भक्त था और जो अपने गुणों के कारण सर्वत्र प्रतिष्ठित एवं जन-जन का प्रिय था । । 190 ।।