Book Title: Pasnah Chariu
Author(s): Rajaram Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 306
________________ 11/8 After the renunciation of Viswabhūti his younger son Marubhūti is appointed next state-priest neglecting the claim of Kamatha due to his bad habits. तं सुणिवि परिंदें वुत्तु एउ अवरु वि असार-संसार-भेउ सकियत्थउ मण्णमि सो जि एक्क इय संसिवि आवाहिय तणूअ अवलोइवि पढमेयरु विसिद्दु सुहि सज्जणवल्लहु हणिय दुट्ठ कमठो वि विवज्जिउ गुण-विमुक्क गउ मंदिरु णिव-सम्माण-हीणु गिहकम्मु करंतहो कालु जाम रणजत्तहे णिय भाविणि थवेवि को परियाणइँ अरिहंतु देउ।। तं मुइवि णरुत्तमु भूमि-देउ ।। जें जिय मयरद्धउ धीरु एक्कु।। णरणाहँ तो दियकुल पसूअ।। सत्थत्थवियक्खणु जण-विसिट्ठ।। उवरोहिय पइ परिठविउ सुट्ठ।। तिय-लंपडु पहु-आएस चुक्क ।। कलुसिय-मणु पायड-णरु व दीणु।। तहो जाइ णिवइ संचलिउ ताम।। मरुभूइ वि गउ भायरु चवेवि।। 10 घत्ता- इत्थंतरि भायरु तहो अगुणायरु णाम कमठु पसिद्धउ। जो सो सुपरिक्खिवि बहुअ णिरक्खिवि कंपइ कामें विद्धउ।। 192 ।। 11/8 गुणज्ञ मरुभूति राजपुरोहित का पद प्राप्त करता है—तब (विश्वभूति की दीक्षा सम्बन्धी-) वृतान्त को सुनकर राजा अरविन्द ने कहा – “अरिहन्त देव को कौन जानता है और, असार-संसार का भेद कौन जानता है? मैं तो यही मानता हूँ कि एक मात्र वही भूमिदेव (ब्राह्मण विश्वभूति) कृतार्थ हुआ है, जिस धीर-वीर ने मकरध्वज (कामदेव) पर विजय प्राप्त की है।" इस प्रकार उसकी प्रशंसा कर उस नरनाथ (अरविन्द) ने द्विजकुल में उत्पन्न उसके दोनों पुत्रों की बुलवाया और उनमें से प्रथमेतर अर्थात् मरुभूति को परीक्षण में विशिष्ट पाया। उसने शास्त्रार्थ में विचक्षण, जनविशिष्ट तथा सुधी-सज्जनों का बल्लभ और दुष्टों के संहारक मरुभूति के लिये विधिपूर्वक पुरोहित-पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। राजा ने कमठ की उपेक्षा कर दी क्योंकि वह गुणहीन था। साथ ही स्त्री-लम्पट तथा प्रभु की आज्ञा में भूलचूक करने वाला था। राजा द्वारा सम्मानहीन (अपमानित), कलुषित मन से प्राकृत नर (साधारण मनुष्य) के समान दीन-हीन होकर वह अपने घर लौट आया। जब वह गृहकार्यों को करता हुआ समय व्यतीत कर रहा था, तभी राजा अरविन्द ने रणयात्रा के लिये प्रस्थान किया। मरुभूति भी अपने भाई कमठ को कहकर तथा अपनी पत्नी को घर में अकेली ही छोड़कर रण-यात्रा में चला गया। घत्ता- इसी बीच, दुर्गुणों की खानि स्वरूप उसका कमठ नाम से जो प्रसिद्ध भाई था, वह अपनी उस अनुज वधू को देखकर बार-बार उसकी ओर ताक-झाँक कर कामबिद्ध हो गया और काँपने लगा।। 192 ।। 224 :: पासणाहचरिउ

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