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Love affair of Kamatha with Vasundhari, younger brothers' wife.
जिह - जिह मंदिर मरुभूइ भज्ज तिह- तिह तहे तणु कमठु वि वलेइ जिह - जिह दरिसइ सुपओहराइँ तिह-तिह तहो मणु विद्दवइ केम जिह-जिह सा कुडिल- कडक्ख देइ वि जायइँ कामालसाइँ बिणिवि णयणालोयणु करंति आलाउ दिंति रइ वित्थरंति बिणिवि णिहुअउ विहसंति संति रइ-सलिल-पवाहँ मयणदाहु
विहलंघल चल्लइ मुक्क लज्ज ।। मणझिंदुअ अइ उल्लाव लेइ ।। लहु भायर-घरिणि मणोहरराइँ ।। घय-कुंभु जलण-संगेण जेम ।। तिह-तिह कमठु वि अइमुच्छ लेइ ।। मयणाणल-ताविय-माणसाइँ । । वीससहिँ स-मणि जण भउ धरंति ।। अवरुप्परु घायहिँ उत्थरंति । । अवसरु पाविवि इक्कंति थंति ।। उल्हावहि विरइवि एक्क गाहु ।।
घत्ता - जिह-जिह बहु-भावहिँ णियय-सहावहिँ कीलहिँ अइ अणुरतहिँ ।
तिह- तिह सुघडेप्पणु पुणु विहणेपिणु णिवडहिँ णिसुढिय गत्तहिँ । । 193 ||
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अनुज - वधु- वसुन्धरी के साथ कमठ का प्रेम-व्यापार
मरुभूति की भार्या वसुन्धरी जैसे-जैसे अपने घर में विह्वल, व्याकुल और निर्लज्ज होकर चलती-फिरती थी, वैसे ही वैसे उसे देखकर उस कमठ का शरीर भी काम ज्वाला के कारण जलता रहता था और उसका मन झिन्दुक के समान खड़बड़ाता रहता था। जैसे-जैसे लघु भ्राता की वह गृहिणी अपने मनोहर सुपुष्ट पयोधरों को दिखाती थी, वैसे ही वैसे उस कर्मठ का मन किस प्रकार द्रवित होता था? ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कि घृत- कुम्भ अग्नि के संयोग से पिघलने लगता है। जैसे-जैसे वह वसुन्धरी अपने कुटिल कटाक्ष उसे मारती थी, जैसे ही तैसे वह कमठ भी अतिशय रूप से मूर्च्छित होने लगता था ।
वे दोनों ही कामासक्त एवं आलसी हो गये और भड़की हुई कामज्वाला से ( निरन्तर ) सन्तप्त - चित्त रहने लगे । वे दोनों ही एक दूसरे को कनखियों से देखते थे और एक-दूसरे पर अपने-अपने मन में विश्वास करने लगे थे, किन्तु लोगों के भय से डरते भी रहते थे । प्रेमालाप करते हुए वे प्रेमराग का विस्तार करने लगे और परस्पर में शरीरों की टकराहट करते हुए वे टकराहटों से कामप्रेरित होने लगे। दोनों ही एकान्त में हँसते-मुस्कुराते रहते और अवसर पाकर वे एक होकर ठहरे रहते। इस प्रकार वे दोनों रति रूपी जल-प्रवाह से मदन की दाह को शान्त करते और प्रगाढ़ प्रेमी बनकर वे उल्लसित रहने लगे ।
घत्ता- जैसे-जैसे वे अनेक प्रकार के भावावेशों से, स्वाभाविक हाव-भाव से, प्रगाढ़ रूप से रागोन्मत्त होकर कामक्रीड़ाएँ करते थे, वैसे-वैसे ही एकाकार होकर फिर बिलग हो जाते थे, फिर श्रान्त-काय होकर विस्तर में ही गिर पड़ते थे। 193 ।।
पासणाहचरिउ :: 225