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8/10 Surendra supplicates Pārswa Jina.
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वत्थु-छन्द- जयहि सामिय जीवगणसरण।
संसाररइ परिहरण करण-करडि-करडयण-दाहण। गयवाह सिवसुहकरण दुह भवतरंगिणि णाह तारण।। जय खरयर तव-तविय-तणु महगिव्वाण पहाण।
जणमण संसय सयहरण केवल किरण णिहाण।। छ।। जय सुरमउड किरणलालिय पय जय परिपालिय पंचमहब्वय।। जय सीलामल-सलिल-सरोवर
जयदीहरभुअजुअ खामोयर।। जय-जय पंचायार-पयासण
जय सग्गापवग्ग सुहभासण।। जय पंचत्थिकाय पवियारण
जय माणावणिहर पवियारण।। जय पंचेंदिय दरय-मयाहिव
जय भवियण कमलवण-दिणाहिव।। जय छज्जीव-णिकाय-परिरक्खण जय वयअइयरागम रक्खण।। जय परिभमिर समण विणिवारण जय लोहावणीयवण-वारण।। जय-जय सत्तभंगि-वित्थारण
जय संसार-दुक्ख-णित्थारण।। जय मायावल्लिणिल्लूरण
जय भव्वयण मणासापूरण।। जय कम्मट्ठ-गठि-मुसुमूरण
जय-जय मोहमहा भडचूरण।।
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सुरेन्द्र द्वारा पार्श्व-जिन की स्तुतिवस्तु-छंद- जीवगण को शरण देने वाले हे स्वामिन्, आप जयवन्त रहे। हे स्वामिन्, आप ही संसार के राग को
मिटाने वाले हो, इन्द्रिय रूपी हाथी के गण्डस्थल को विदारने वाले हो, वाधारहित शिवसुख के करने वाले हो, हे नाथ, आप ही संसार रूपी समुद्र से तारने वाले हो, उग्रतर तप से भव-शरीर को तपानें
वाले हो तथा जन-मन के शत-शत संशयों को मिटाने वाले केवलज्ञान रूपी किरणों के निधान हो। (छ) हे स्वामिन्, देवों के मुकुटों से निकली किरणों से सुशोभित पद वाले आपकी जय हो। पाँच महाव्रतों को पालने वाले हे देव, आपकी जय हो। शील रूपी निर्मल जल के लिये सरोवर के समान हे देव, आपकी जय हो। दीर्घ भुजा तथा कृशोदर वाले हे नाथ, आपकी जय हो। पंचाचार के प्रकाशक हे देव, आपकी जय हो, जय हो। स्वर्गापवर्ग के सुख के भाषक (प्रकाशक) हे नाथ, आपकी जय हो। पंचास्तिकाय का विचार प्रगट करने वाले हे देव, आपकी जय हो। मनरूपी पर्वत के विदारने वाले हे प्रभु, आपकी जय हो। पंचेन्द्रियरूपी गजों के लिये सिंह के समान हे नाथ, आपकी जय हो। भव्यजनरूपी कमलवनों को विकसित करने के लिये सूर्य के समान हे नाथ, आपकी जय हो। षट्कायिक जीवों के रक्षक हे देव, आपकी जय हो। व्रतों के अतिचार तथा व्रत आदि के उपदेश से आगम की रक्षा करने वाले हे देव, आपकी जय हो। भव-भ्रमण को नष्ट करने वाले हे महाश्रमण, आपकी जय हो, लोहा, मिट्टी, वृक्ष, जल आदि को बिना पूछे ही लेने से रोकने वाले हे देव, आपकी जय हो। सप्तभंगी-न्याय सिद्धान्त का विस्तार करने वाले, हे देव आपकी जय हो। संसार-दुखों से पार करने वाले हे देव, आपकी जय हो। माया (छल) रूपी लता का छेदन करने वाले हे देव, आपकी जय हो। भव्यजनों के मन की अभिलाषा पूर्ण करने वाले हे देव, आपकी जय हो। आठ कर्मों की गांठों के खोलने वाले हे देव, आपकी जय हो। मोह रूपी महाभट को चूर-चूर करने वाले हे देव, आपकी जय हो, जय हो।
पासणाहचरिउ :: 171