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Description of middle universe which contains innumerable continents (Dwīpas), mountains and regions including several geographical units.
जंबूदीउ सयल दीवाहिउ
महजोयण सय सहस पमाणउँ भरहखेत्तु तहो दाहिणि संठिउ वित्तु अद्ध वेयड्ढें गंगा-सिंधु पहाणइ खंडिउ पंचखंड तेत्थु वि दुप्पेच्छहँ अज्जखंडु एक्कग्गि सुपसिद्धउ उत्तरेण तहो गिरि - हिमवंतउ हइमवंतु पुणु खेत्तु रवण्णउँ पुणु वि महाहिमवंतु महीहरु
तिरिय लोए जिणणा साहिउ । । तासु मज्झि सुरगिरि गिरिराणउ ।। हँ जणवउ विसइ उक्कंठिउ ।। सीमाराम-गाम-णयरहें ।। पविरेहइ छक्खंडहिँ मंडिउ ।। परिवसंति धम्मुज्झिय मेच्छहँ ।। घर-पुर-पट्टण-णयर समिद्धउ ।। सलिल भरिय गहीर दह वंतउ ।। भो-भूमि जुअहँ परिपुण्णउँ ।। कतिहि सुर-तियहिँ मणोहरु ।।
घत्ता - पुणु तहो उत्तरदिसि भोयभूमि परिणिवसइ ।
णामेण पसिद्धी हरि - विदेह सुरि हरिसइ ।। 157 ||
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मध्यलोक वर्णन : द्वीप, पर्वत एवं क्षेत्र आदि एवं अन्य भौगोलिक इकाइयों का वर्णन
इस तिर्यक् लोक में जंबूद्वीप समस्त द्वीपों का शिरोमणि राजा है, ऐसा जिननाथ ने कहा है । वह एक लाख महायोजन प्रमाण वाला है। उसके मध्य में पर्वतों का राजा सुरगिरि (सुमेरु पर्वत) है।
उस (सुमेरु) की दक्षिण दिशा में भरतक्षेत्र स्थित है, जहाँ जनपद के सभी लोग (देशवासी) उत्कंठित (प्रसन्न ) रहा करते हैं।
उस (भरतक्षेत्र) के बीचों-बीच सीमावर्त्ती उद्यानों वाले गाँवों एवं नगरों से युक्त विजयार्द्ध पर्वत है। इस कारण भरतक्षेत्र दो भागों में विभक्त हो गया है। फिर गंगा एवं सिंधु नाम की दो प्रधान महानदियों से विभक्त होकर वह भरत क्षेत्र छह खंडों वाला होकर सुशोभित रहता है। उसमें भी दुष्प्रेक्ष्य एवं धर्म के त्यागी म्लेच्छों के पाँच खंड हैं । घर, पुर, पट्टन एवं नगरों से समृद्ध एक अग्रगण्य आर्य खंड प्रसिद्ध है । उस भरतक्षेत्र की उत्तर दिशा में हिमवान पर्वत है, जिस पर जल से भरा एक गंभीर पद्म द्रह है ।
उसके आगे रमणीय हैमवंत क्षेत्र है, जो युगला - युगलियों से परिपूर्ण भोग-भूमि है। उसके आगे महाहिमवान् पर्वत है, जो क्रीड़ा करती हुई देवांगनाओं के कारण मनोहर है।
घत्ता- इसकी उत्तर दिशा में भोगभूमि के समान हरि और विदेह नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र हैं, जहाँ देव गण हर्ष पूर्वक निवास करते हैं ।। 157 ||
पासणाहचरिउ :: 187