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Colophon इय सिरिपासचरित्तं रइयं बुहसिरिहरेण गुणभरियं । अणुमण्णियं मणुज्जं णट्टल णामेण भब्वेण ।। छ।। रविकित्ति पबोहणए पुहवीस पहंजणस्स गुणणिहिणो। जिणदिक्खागिण्हणए दहमी संधि परिसम्मत्तो।। छ।। संधि 10।। छ।।
Blessings to Sāhu Nattala, the inspirer and guardian
यस्याऽशेष गुणाकरस्य कविभिर्काव्यैर्यशस्तन्यते, स्त्रीणां सन्ततिभिर्गजेन्द्रगतिभिर्सङ्गस्सदा काम्यते । धर्मिष्ठरुपजीव्यते च वचनं जाङ्गश्रियामुच्यते, स श्रीमानिह नट्टलः क्षितितले जीयाच्चिरं धर्मधीः ।
पुष्पिका इस प्रकार गुण-भरित, मनोज्ञ एवं नट्टल साहू द्वारा अनुमोदित इस पार्श्वचरित की रचना बुध श्रीधर ने की है। पृथिवीश रविकीर्ति एवं गुण-निधान राजा प्रभंजन के लिये प्रबोधित करने तथा उनके द्वारा मुनि-दीक्षा ग्रहण करने सम्बन्धी यह दसवीं सन्धि समाप्त हुई।
आश्रयदाता नट्टल साहू के लिये आशीर्वाद । समस्त गुणों के आकर-स्वरूप जिस नट्टल साहू की यशश्री कवियों के काव्यों में सुशोभित है, मन्दगज गामिनी युवतियाँ निरन्तर ही जिसका सान्निध्य प्राप्त करने के लिये लालायित रहा करती हैं, जिसका सुन्दर रूप, मधुरवाणी एवं अंग-प्रत्यंगों की श्री धर्मिष्ठों द्वारा प्रशंसित है, ऐसा धर्म-धुरन्धर, धीर-वीर वह श्रीमान् नट्टल साहू इस पृथिवी-मण्डल पर चिरकाल तक जीवित रहे।
216 :: पासणाहचरिउ